२ोटी कविता का साराशं
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एक बेहतरीन कविता , रोटी के कितने अर्थ खोलता । 'कला' कला के लिए या जीवन के लिए के शाश्वत द्वंद्व को ललकारती हुई यह कविता जीवन और मनुष्यता के पक्ष मे खड़ी दिखती है । धूमिल कि एक छोटी कविता रोटी पर है । एक आदमी रोटी बेलता है / एक आदमी रोटी खाता है / एक आदमी न बेलता है न खाता है वह रोटी से खेलता है / मैं पूछता हूँ यह तीसरा आदमी कौन है / मेरे देश कि संसद मौन है / रोटी से खेलने वाले उस तीसरे आदमी को दास जी अपनी कविता मे बताते हैं कि वह तीसरा आदमी साहूकार है जो नहीं चाहता कि रोटी का अर्थ निश्चित हो । कवि पाठको से यह पूछता है ''कि भूखा व्यक्ति रोटी कि तलाश करेगा // या कविता लिखेगा "? फिर स्वयम ही उत्तर भी देते हैं कि " बड़ी होती है रोटी कि तलाश // किसी भी कालजयी कविता से '। बहुत बहुत बधाई दास जी इस कालजयी कविता के लिए.
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