तुलसी इस संसार में, भाँति-भाँति के लोग।
सबसे हिल-मिल चालिए, नदी-नाव संजोग ॥4॥
तुलसी हाय गरीब की, कबहूँ न खाली जाय।
मुए ढोर के चाम से, लौह भस्म हो जाय॥5॥
- तुलसीदास
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दोहा अ
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