। तुलसी संत सुअंबु तरु, फूलि फलहिं परहेत।
इतते ये पाहन हनन, उतते वे फल देत ।। 5 ।। translate in hindi
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मित्र इसका अर्थ हैं कि संत एक वृक्ष के समान होते हैं, जो दूसरों के हित के लिए फलते- फूलते हैं। इन पर जितने पत्थर मारो, उतने ही वे फल देते हैं। अर्थात भाव यह है कि संत दूसरों के हित के लिए ही काम करते हैं। तथा ये अपने प्रति बोले गए कटु वचनों का उत्तर भी मीठी वाणी में देते हैं। तथा दूसरों का कल्याण करना ही उनका मुख्य उद्देश्य होता हैं।
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तुलसी संत सुअंबु तरु, फूलि फलहिं परहेत।
इतते ये पाहन हनन, उतते वे फल देत ।।
संदर्भ — यह दोहा तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस से उद्धृत है। इस दोहे में तुलसीदास महाकवि तुलसीदास ने संतों की महिमा का बखान किया है।
भावार्थ — भावार्थ तुलसीदास जी कहते हैं कि संतों की महिमा अपरंपार है। संत सचमुच में संत ही होते हैं, वह समाज को केवल देना ही जानते हैं, चाहे समाज के लोगों उन्हें कितना भी धिक्कारें, प्रताड़ना करें, उन्हें अपशब्द कहें, उनका अनादर करें, लेकिन संत इसकी परवाह नही करते। उनका काम देना है, तो वे देते हैं. वही सच्चा संत है जो बिना किसी स्वार्थ के अपना ज्ञान सब पर लुटाए। संत लोग फलदार वृक्ष की तरह होते हैं। फलदार वृक्ष पर कितने भी पत्थर मारो लेकिन वह हमेशा फल ही देगा। उसका काम है देते रहना। उसी तरह संतों का काम भी ज्ञान बांटते रहना है, समाज के लोग उनके साथ कैसा भी व्यवहार क्यों न करें।