तुलसीदास की कृति रामचरितमानस में वर्णित मार्मिक प्रसंगों का उल्लेख कीजिए
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तुलसीदजी की रामायण एक महासागर है इसे जितना पढ़ो उतने बार नया लगता है.रामायण में तुलसीदासजी ने सभी महापुराणों का सार लिख दिया है.सनातन धर्म की इस युग में प्रचार और प्रसार का सबसे बड़ा माध्यम है पुरे विश्व में इसको लोग आदर सहित अध्यन करते है.हमारे धर्म गुरुओ ने विदेशों में भी इसकी गंगा कॉम प्रवाहित कर के धर्म का खूब प्रचार किया और लोगो को सनातन धर्म की नीतिओं से अवगत कराया.विभिन्न भाषाओ में रामचरित मन प्रकाशित किया गया है. जिनमे कुछ प्रसंगो को विभिन्न तरह से लिखा गया है जो तुलसीदास जी की रम्यं से भिन्न है उन्ही में कुछ पर चर्चा की है.उम्मीद है अच्छा लगेगा.
१. रामायण पड़ने के बाद सबसे ज्यादा गुस्सा और नफरत केकई माता से हो जाती है क्योंकि उनकी वजह से भगवन राम को बन जाना पड़ा और इसीलिए कोई भी अपनी बच्ची का नाम केकई नहीं लगता लेकिन इसके परदे के पीछे की कहानी कुछ अलग ही है .माता केकई भगवन राम को सबसे ज्यादा प्यार करती थी और भगवन अपना ज्यादातर समय उनके महल में व्यतीत करते थे.माता केकई ने ही माता सीता को सोने का महल “कनक भवन” मुहँ दिखाई में दिया था.परन्तु राम राज्य की नीवा और राक्षसो का बढ़ केकईजी की वजह से हुआ.भगवन राम सब कुछ जानते थे इसलिए एक दिन जब वे एकांत में माता केकई के पास बैठे तो उन्होंने माँ से कहा की आप मुझे एक चीज देंगी माँ ने हां कर दिया परन्तु भगवन राम ने कहा की उसके बाद कोई भी आपका नाम नहीं रक्खेगा माताजी इस पर भी मान गयी और पूंछा क्या चाहते हो.उन्होंने कहा पहले हमारे सर पर हाथ रख कर तीन बार कसम खाओ माताजी ने ऐसा किया और पुछा क्या मांगते हो,भगवन राम ने कहा हो सकता है इससे आप विधवा भी हो जाये और कुछ सोच कर माताजी राज़ी हो गयी.पहले भगवन ने उन्हें सब बात समझा दी और राजतिलक के समय १४ वार्स का बनवास मांगने को कहा इसीलिए वे राज़ी हो गयी और वाढव के साथ इतनी बदनामी सही परन्तु भगवन रामजी कीबात मान ली.
२.जब चित्रकूट में रामजी से भरतजी सभा में मिले तो भरतजी ने रामजी से पूंछा की दो वरदान जो पिताजी ने माताजी के मागने में दिए थे उसमे पहला हमको राजतिलक का था और दूसरा आपको बनवास का तो फिर दूसरा वरदान कैसे हो गया बिना हमें गद्दी दिए क्योंकि यदि भरतजी को राजतिलक मिल जाता तो यो अपने सत्ता के बल पर रामजी का बनवास खत्म करके उनको राज दे देते और इस तरह पूरी रामायण खत्म हो जाती.रामजी ने कहा की अब ये विवाद का विषय नहीं है की क्या हुआ लेकिन यदि तूने माता केकई को कुछ बड़ा भला का तो हम तुम्हे अपना भाई नहीं मानेगे परन्तु भरतजी ने माता केकई को जिंदगी भर माँ नहीं कहा.
३.जब रावण रणभूमि में मर रहा था तो रामजी ने लक्ष्मणजी को उससे शिक्षा ग्रयरण करने के लिए भेज क्योंकि वह बहुत विद्वान था.लक्ष्मणजी सर की तरफ करे हो गए तो उसने पैर की तरफ करने को कहा क्योंकि सुनने वाले को सामने होना चाइये.फिर उसने दो बात कही की अच्छे कार्य को टालना नहीं चाइये और बुरे काम को जल्दी नहीं.रावण ने कहा की वह समुद्र के पानी को मीठा करना चाहता था और स्वर्ग तक सीढी बनवाना चाहता था परन्तु इसको टालता रहा और सीता के अपहरण को फ़ौरन कर लिया.
४.अपनी रामायण में तुलसीदासजी ने श्रीमद भगवत और गीता के करीब ८०% प्रसंगो को अपनी भाषा में लिखा है जैसे नवधा भक्ति का प्रसंग या फिर भगवानजी अवतार क्यों लेते हैं.
५.जब हनुमानजी संजीवन बूटी ले कर भरतजी के द्वारा अयोध्या में गिरा दिए गए थे तो माता केकई सीताजी के अपहरण को सुनकर बोली की मेरा धनुश वाण लाओ हम रावण से युद्ध करेंगे हमारे होते सीता को बंदी नहीं बना सकता और माता सुमित्रा ने कहा की शत्रिघ्न युद्ध करने जायेगा यदि लक्ष्मण को कुछ हो जाता है परन्तु हनुमानजी ने दोनों को शांत कर समझा दिया.
६.सीता माता के हरण के पहले भगवन रामजी ने सीताजी से अग्नि में समाकर परछाई के रूप में रहने को कहा था.युद्ध के बाद अग्नि परीक्षा नहीं थी परन्तु असली सीताजी को अग्नि से लेकर परछाई को वापस करना था.
७.जब हनुमानजी ने लंका जलाई तो सबके माकन जल गए केवल विभीषण जी को छोड़ कर?क्योंकि प्रसाद उसे ही मिलता है जो दक्षिणा देता है.हनुमानजी की पूँछ में बांधने के लिए सबने कपडे और तेल दिया परन्तु विभीषणजी ने नहीं इसीलिये उनको हनुमानजी ने प्रसाद नहीं दिया.
८.विभीषणजी ने अपने घर के बहार राम लिख दिया कुछ लोगो ने शिकायत की तो रावण ने अपने मंत्री से जानने के लिए भेजा.विभीषणजी ने कहा की हमने तो अपने माए बाप का नाम लिखा है क्योंकि रा (रावण) +म (मंदोदरी) सो मंत्री ने यही रावण को बताया.
९.रामायण में बंदरो की संख्या को १८ पदम बताया गया जो हिन्दुओ के हिसाब से बहुत बड़ी होती है..
१०. रावण इतना बलवान था तो उसने माता सीता के साथ जबरदस्ती क्यों नहीं की.उसे स्वर्ग की अफसरा रम्भा ने जिसके साथ उसने गलत व्यवार किया था
१. रामायण पड़ने के बाद सबसे ज्यादा गुस्सा और नफरत केकई माता से हो जाती है क्योंकि उनकी वजह से भगवन राम को बन जाना पड़ा और इसीलिए कोई भी अपनी बच्ची का नाम केकई नहीं लगता लेकिन इसके परदे के पीछे की कहानी कुछ अलग ही है .माता केकई भगवन राम को सबसे ज्यादा प्यार करती थी और भगवन अपना ज्यादातर समय उनके महल में व्यतीत करते थे.माता केकई ने ही माता सीता को सोने का महल “कनक भवन” मुहँ दिखाई में दिया था.परन्तु राम राज्य की नीवा और राक्षसो का बढ़ केकईजी की वजह से हुआ.भगवन राम सब कुछ जानते थे इसलिए एक दिन जब वे एकांत में माता केकई के पास बैठे तो उन्होंने माँ से कहा की आप मुझे एक चीज देंगी माँ ने हां कर दिया परन्तु भगवन राम ने कहा की उसके बाद कोई भी आपका नाम नहीं रक्खेगा माताजी इस पर भी मान गयी और पूंछा क्या चाहते हो.उन्होंने कहा पहले हमारे सर पर हाथ रख कर तीन बार कसम खाओ माताजी ने ऐसा किया और पुछा क्या मांगते हो,भगवन राम ने कहा हो सकता है इससे आप विधवा भी हो जाये और कुछ सोच कर माताजी राज़ी हो गयी.पहले भगवन ने उन्हें सब बात समझा दी और राजतिलक के समय १४ वार्स का बनवास मांगने को कहा इसीलिए वे राज़ी हो गयी और वाढव के साथ इतनी बदनामी सही परन्तु भगवन रामजी कीबात मान ली.
२.जब चित्रकूट में रामजी से भरतजी सभा में मिले तो भरतजी ने रामजी से पूंछा की दो वरदान जो पिताजी ने माताजी के मागने में दिए थे उसमे पहला हमको राजतिलक का था और दूसरा आपको बनवास का तो फिर दूसरा वरदान कैसे हो गया बिना हमें गद्दी दिए क्योंकि यदि भरतजी को राजतिलक मिल जाता तो यो अपने सत्ता के बल पर रामजी का बनवास खत्म करके उनको राज दे देते और इस तरह पूरी रामायण खत्म हो जाती.रामजी ने कहा की अब ये विवाद का विषय नहीं है की क्या हुआ लेकिन यदि तूने माता केकई को कुछ बड़ा भला का तो हम तुम्हे अपना भाई नहीं मानेगे परन्तु भरतजी ने माता केकई को जिंदगी भर माँ नहीं कहा.
३.जब रावण रणभूमि में मर रहा था तो रामजी ने लक्ष्मणजी को उससे शिक्षा ग्रयरण करने के लिए भेज क्योंकि वह बहुत विद्वान था.लक्ष्मणजी सर की तरफ करे हो गए तो उसने पैर की तरफ करने को कहा क्योंकि सुनने वाले को सामने होना चाइये.फिर उसने दो बात कही की अच्छे कार्य को टालना नहीं चाइये और बुरे काम को जल्दी नहीं.रावण ने कहा की वह समुद्र के पानी को मीठा करना चाहता था और स्वर्ग तक सीढी बनवाना चाहता था परन्तु इसको टालता रहा और सीता के अपहरण को फ़ौरन कर लिया.
४.अपनी रामायण में तुलसीदासजी ने श्रीमद भगवत और गीता के करीब ८०% प्रसंगो को अपनी भाषा में लिखा है जैसे नवधा भक्ति का प्रसंग या फिर भगवानजी अवतार क्यों लेते हैं.
५.जब हनुमानजी संजीवन बूटी ले कर भरतजी के द्वारा अयोध्या में गिरा दिए गए थे तो माता केकई सीताजी के अपहरण को सुनकर बोली की मेरा धनुश वाण लाओ हम रावण से युद्ध करेंगे हमारे होते सीता को बंदी नहीं बना सकता और माता सुमित्रा ने कहा की शत्रिघ्न युद्ध करने जायेगा यदि लक्ष्मण को कुछ हो जाता है परन्तु हनुमानजी ने दोनों को शांत कर समझा दिया.
६.सीता माता के हरण के पहले भगवन रामजी ने सीताजी से अग्नि में समाकर परछाई के रूप में रहने को कहा था.युद्ध के बाद अग्नि परीक्षा नहीं थी परन्तु असली सीताजी को अग्नि से लेकर परछाई को वापस करना था.
७.जब हनुमानजी ने लंका जलाई तो सबके माकन जल गए केवल विभीषण जी को छोड़ कर?क्योंकि प्रसाद उसे ही मिलता है जो दक्षिणा देता है.हनुमानजी की पूँछ में बांधने के लिए सबने कपडे और तेल दिया परन्तु विभीषणजी ने नहीं इसीलिये उनको हनुमानजी ने प्रसाद नहीं दिया.
८.विभीषणजी ने अपने घर के बहार राम लिख दिया कुछ लोगो ने शिकायत की तो रावण ने अपने मंत्री से जानने के लिए भेजा.विभीषणजी ने कहा की हमने तो अपने माए बाप का नाम लिखा है क्योंकि रा (रावण) +म (मंदोदरी) सो मंत्री ने यही रावण को बताया.
९.रामायण में बंदरो की संख्या को १८ पदम बताया गया जो हिन्दुओ के हिसाब से बहुत बड़ी होती है..
१०. रावण इतना बलवान था तो उसने माता सीता के साथ जबरदस्ती क्यों नहीं की.उसे स्वर्ग की अफसरा रम्भा ने जिसके साथ उसने गलत व्यवार किया था
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