Music, asked by rp1006608, 4 months ago

तानसेन की जीवनी बताइए हिंदी में​

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Answered by harshpunde
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Answer:

जादुई संगीतकार तानसेन मुगल सम्राट अकबर के दरबार में ‘नवरत्नों’ (नौ रत्न) में से एक थे। तानसेन का जन्म ग्वालियर में मुकंड मिश्रा के पुत्र के रूप में हुआ था, जो कि एक कवि थे। एक छोटे बच्चे के रूप में तानसेन ने अपने समय के प्रसिद्ध संगीतकार हरिदास स्वामी से संगीत का ज्ञान प्राप्त किया था। तानसेन ने पहले मेवाड़ के राजा रामचंद्र और फिर सम्राट अकबर के यहां एक दरबारी संगीतकार के रूप में कार्य किया।तानसेन को सम्राट अकबर द्वारा मियां का खिताब दिया गया था और बाद में उन्हें मियां तानसेन के रूप में जाना जाने लगा। हालांकि एक हिंदू परिवार में पैदा हुए तानसेन ने बाद में इस्लाम धर्म को अंगीकार कर लिया था।

कहा जाता है कि संगीत में उनके समकक्ष कोई नहीं है और ऐसा माना जाता है कि उन्होंने अपने संगीत के माध्यम से चमत्कार किए थे। कहा जाता है कि तानसेन मेघ मल्हार राग गाकर बारिश कराने की और दीपक राग गाकर आग जलाने की क्षमता रखते थे। तानसेन कई रागों जैसे दरबारी कान्हड़ा, मियां की टोड़ी, मियां की मल्हार और मियां की सारंग के रचयिता हैं। माना जाता है कि गायन की प्रसिद्ध ध्रुपद शैली तानसेन और उनके गुरु स्वामी हरिदास ने ही शुरू की थी। तानसेन ने संगीतसार और रागमाला नामक संगीत की दो महत्वपूर्ण कृतियों की रचना की। वे एक रहस्यवादी संगीतकार थे।

तानसेन का मकबरा ग्वालियर में संत हजरत गौस के मकबरे के पास स्थित है, जिनकी शिक्षा से प्रभावित होकर उन्होंने इस्लाम धर्म को अपनाया था।। तानसेन के मकबरे के पास एक तामरिंद वृक्ष है, माना जाता है कि यह उतना ही पुराना है जितना की मकबरा। एक पौराणिक कथा के अनुसार कोई भी व्यक्ति इस तामरिंद के वृक्ष की पत्तियों को चबाता है तो उसे महान संगीतिक गुणों का आशीर्वाद मिलता है। तानसेन के वंशजों को ‘सेनिया घराना’ कहा जाता है।

Answered by raniguriya1991
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Answer:

तानसेन का जन्म सन् 1506 में हुआ था. जिनका नाम तब तन्ना पड़ा था. संगीत का और ज्ञान अर्जित करने के लिए उन्हें स्वामी जी ने हजरत मुहम्मद गौस के पास ग्वालियर भेज दिया. संगीत का पर्याप्त ज्ञान अर्जित करने के बाद तानसेन पुनः स्वामी हरिदास के पास मथुरा लौट आये. यहाँ उन्होंने स्वामी जी से ‘नाद’ विद्या सीखी. अब तक तानसेन को संगीत में अद्भुत सफलता मिल चुकी थी. इनके संगीत से प्रभावित होकर रीवां – नरेश ने इन्हें अपने दरबार का मुख्य गायक बना दिया. रीवां – नरेश के यहाँ अकबर को तानसेन का संगीत सुनने का अवसर मिला.

वह इनके संगीत को सुनकर भाव – विभोर हो उठा. उसने रीवा – नरेश से आग्रह कर तानसेन को अपने दरबार में बुला लिया. इनके संगीत से प्रभावित होकर अकबर ने इन्हें अपने नवरत्नों में स्थान दिया. तानसेन के विषय में अनेक किंवदन्तियाँ प्रचलित है कहा जाता है की इनके गायन के समय राग – रागिनियाँ साक्षात् प्रकट हो जाती थी.

एक बार बादशाह अकबर ने तानसेन से ‘दीपक राग’ गाने का हठ किया. निश्चित समय पर इन्होने दरबार में दीपक राग गाना शुरू किया. ज्यो – ज्यो आलाप बढ़ने लगा गायक और श्रोता पसीने से तर होने लगे. गाने का अंत होते – होते दरबार में रखे दीपक स्वयं जल उठे और चारो ओर अग्नि की लपटें दिखाई देने लगी.

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