टोपी उतार कर गजाधर बाबू ने कहां रखी
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अब कितने वर्षों बाद यह अवसर आया था जब वह फिर उसी स्नेह और आदर के मध्य रहने जा रहे थे। टोपी उतारकर गजाधर बाबू ने चारपाई पर रख दी, जूते खोलकर नीचे खिसका दिए। अन्दर से रह-रहकर कहकहों की आवाज आ रही थी। इतवार का दिन था उनके सब बच्चे इकट्ठे होकर नाश्ता कर रहे थे।
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