Hindi, asked by Vignan7057, 9 months ago

तिरती है समीर - सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया -
जग के दग्ध ह्रदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया -

Answers

Answered by gauravarduino
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Explanation:

इन अस्थिर सुखों पर दु:ख की छाया दिखाई दे रही है। ... इस दग्ध हृदय पर निर्दय विप्लव अर्थात् क्रांति की माया (जादू) फैली ... निर्दय विप्लव की प्लावित माया।

Answered by nikitasingh79
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निम्नलिखित "तिरती है समीर - सागर पर

अस्थिर सुख पर दुख की छाया  

जग के दग्ध ह्रदय पर

निर्दय विप्लव की प्लावित माया" काव्यांश की व्याख्या निम्न प्रकार से है :  

व्याख्या :  

कवि बादल का क्रांति के रूप में आह्वान करते हुए कहता है कि हे क्रांति के दूत बादल, जिस प्रकार वायु सागर पर तैरती रहती है। मानवीय जीवन में अस्थिर सुखों पर दुखों की छाया मंडराती रहती है। ठीक उसी प्रकार संसार के दग्ध हृदय पर तेरी कठोर क्रांति रूपी माया छाई हुई है अर्थात मानव जीवन में सूखा अस्थायी है। हवा के समान सुख चंचल और अस्थिर है। जीवन में सुखों पर सदैव दुख के बादल मंडराते रहते हैं। मानव जीवन में सुख-दुख की छाया का आवागमन चलता रहता है। वे कभी भी स्थिर नहीं रहते। संसार के दुख से दुखी और जले हुए हृदय कठोर क्रांति का मायावी विस्तार फैला हुआ है।

आशा है कि यह उत्तर आपकी अवश्य मदद करेगा।।।।

 

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