Hindi, asked by momink, 1 year ago

तेते पांव पसारिए जेती लंबी सौर

इस वाक्य पर 150 से 200 शब्दों में निबंध लिखिए!

Answers

Answered by jkhan1
110
hey \: dear \: here \: is \: your \: answer

⭐⭐--------------------------------------------------------------------------------⭐⭐

⭕भूमिका;

सरोवर में जिस प्रकार जल आने के मार्ग होते हैं, उसी प्रकार जल के निकलने के भी मार्ग होते हैं।
यदि किसी सरोवर में जल आता रहे पर जाने के लिए मार्ग ना हो तो सरोवर की क्या स्थिति होगी ? मनुष्य का जीवन भी एक सरोवर के समान है। जल की भांति उसमें भी धन आने जाने के रास्ते बने होते हैं, जिन्हें आय व्यय कहते हैं। यदि जीवन म़े केवल आय ही आए हो पर व्यय का समुचित मार्ग ना हो तो जीवन की मर्यादा टूट जाएगी ।

⭕आय-व्यय का संतुलन;

आय का अर्थ है- लाभ,कमाई और व्यर्थ का अर्थ है-खर्च । गृह गृहस्थी की चलाने के लिए धन मिलता है जीविकोपार्जन से। इस प्रकार आय व्यय का चक्कर चलता है। आय कम हो और व्यय अधिक करें तो जीवन की गाड़ी नहीं चल सकती। इस प्रकार आय-व्यय संतुलित रुप से चलता रहना चाहिए।

⭕आय का सदुपयोग;

व्यक्ति को आपत्ति के लिए कुछ बचा कर रखना चाहिए। भविष्य में जो बचता है उसी में से अपने चालू व्यय की व्यवस्था करनी चाहिए । यदि वह अधिक है और आय कम है तो चिंता का विषय हो जाता है । आय का विचार किए बिना आय से अधिक खर्च करने पर कुबेर का खजाना भी खत्म हो जाता है।

⭕फैशन व फिजूलखर्ची;

आज कल फैशन व फिजूलखर्ची का रोग बढ़ता जा रहा है। अधिकांश लोग कहते हुए सुने जा सकते हैं कि "महंगाई से तंग आ गए" वास्तव में वे महंगाई से इतने परेशान नहीं है जितनी फिजूलखर्ची से हैं। शादी विवाहों में फिजूलखर्ची पर नियंत्रण किया जाना चाहिए।


thank you for asking
✌✌

momink: thank u very much
jkhan1: ur wlcm DEAR
Keshavc: nice answer
jkhan1: thank you:-)..
ishu310: hlo
ishu310: I want this essay
ishu310: is this completely right for the given topic
Anonymous: Yep! This is completely right!
Answered by Anonymous
51

आज का युग दिखावे का युग है। प्रत्येक मनुष्य स्वयं को अधिक सभ्य और शिष्ट दिखाने के चक्कर में दिखावे नामक बीमारी से ग्रसित हो रहा है। इसका परिणाम अतिरिक्त आर्थिक भार। आज लोगों की आमदनी रुपया है परन्तु खर्चा सवा रुपया। इस सवा के फेर में उसे स्वयं को अन्य प्रकार के कार्यों में उलझाना पड़ता है।

कोई ओवर टाइम करता है, तो कोई अन्य किसी कार्य को करता है, तो कोई बेईमानी भी करता है। इस कारण लोगों के मन में अशांति, कुंठा, असंतोष तथा उठा-पटक चलती रहती है। ऑसंतोष का भाव तो जैसे उड़ जाता है। लोगों को देखकर हम प्रयास करते हैं कि उनके पास यदि एक कार है, तो हमारे पास तीन होनी चाहिए। इसके लिए हम कर्ज लेते हैं, लोन के चक्कर काटते हैं। फिर प्रश्न उठता है कि कार ली है, तो अब अच्छे कपड़े भी होने चाहिए, रहन-सहन उच्च होना चाहिए। इसके लिए फिर चिंता होने लगती है।

परिणाम एक बाद एक खर्च और उनके लिए लिया जाने वाला कर्ज। कर्ज का बोझ बढ़ जाता है और एक दिन यदि हम कर्ज नहीं चुका पाते, तो हमसे सब छिन लिया जाता है। इसलिए कहते हैं कि हमारे पास जितना है हमें उसी में ही प्रसन्न रहना है। दिखावे के इस दौर में आप स्वयं को अच्छा तो दिखा सकते हो। परन्तु अंदरूनी तौर पर आप स्वयं को कमज़ोर बना रहे होते हो। हमें चाहिए स्वयं को अंदर से मजबूत बनाए। इस दिखावे की रेस से स्वयं को दूर रखें। अपने को ऐसा बनाएँ कि लोग हमारा अनुसरण करें। इसके लिए हमारे कार्य और गुण अच्छे होने चाहिए।

इस तरह हम अपने परिवार को भरपूर जीवन दे सकते हैं और उनके भविष्य के लिए कुछ पैसा बचाकर रख सकते हैं। एक लोकोक्ति विद्यमान है कि जितने चादर हो, मनुष्य को उतने पैर फैलाने चाहिए। हमारे पूर्वजों ने बहुत उचित कही है।
_◾️_____◾️_

धन्यवाद।
Similar questions