तोत तो चान के कार्य से हमें क्या प्रेरणा लेनी चाहिए
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तोत्तो चान, शिक्षा दर्शन, पुस्तक समीक्षा‘तोत्तो-चान- खिड़की में खड़ी एक नन्ही लड़की‘, इस किताब के पन्ने खत्म होते लगा जैसे कोई हसीन सपना अंगड़ाइयों में टूट रहा हो। पर यह सपने-सी दुनिया कभी सच थी। जापान का एक स्कूल- तोमोए। उसके हेडमास्टर श्री सोसाकु कोबायाशी। लगभग पचास बच्चे और उनमें एक तोत्तो-चान, एक नन्ही, सहृदय लड़की।
द्वितीय विश्वयुद्ध के विध्वंस में तोमोए जलकर राख हो गया था। सड़क से अपने स्कूल को जलते देख हेडमास्टर जी ने उत्साह से पूछा था- ‘हम अब कैसा स्कूल बनाएँ?’ लेखिका कहती हैं, ‘हेडमास्टर जी का बच्चों के लिए अथाह प्यार और शिक्षा के प्रति समर्पण उन लपटों से कहीं अधिक शक्तिशाली था।‘
हेडमास्टर जी (श्री कोबायाशी) और तोमोए का शिक्षा-दर्शन
तोमोए उन्हीं हेडमास्टर जी का रचा संसार था। आनंद, उमंग और उल्लास से सराबोर। उत्साह और ऊर्जा से लबरेज। उन्मुक्त वातावरण। हेडमास्टर जी का बच्चों को स्नेह संरक्षण। बच्चों के प्रति उनकी गहरी आस्था और संवेदनशीलता। विषयों पर बच्चों को अपनी-अपनी तरह से काम करने और बोलने की आजादी। गैर पारंपरिक शिक्षण पद्धति, रचनात्मक गतिविधियाँ। लक्ष्य- शरीर व मस्तिष्क का समान विकास, जिससे पूर्ण सामंजस्य तक पहुँचा जा सके।
हेडमास्टर जी का मानना था, ‘सभी बच्चे स्वभाव से अच्छे होते हैं। उस अच्छे स्वभाव को उभारने, सींचने-संजोने और विकसित करने की जरूरत है। स्वाभाविकता मूल्यवान है। चरित्र यथासंभव स्वाभाविकता के साथ निखरे। बच्चे अपनी निजी वैयक्तिकता में बड़े हों। आत्मसम्मान के साथ बिना किसी हीन भाव व कुंठा के। बच्चों को पूर्व निश्चित खांचों में डालने की कोशिश न करें। उन्हें प्रकृति पर छोड़ो। उनके सपने तुम्हारे सपनों से कहीं अधिक विशाल हैं।’