तराष्ट्रीय शिक्षा आयोग की स्थापना कब हुई? (When was the International Education
Commission established?) * *
0 1993
O 1997
0 1995
0 1991
स्वामित्व अधिगम आव्यूह के जनक हैं-(The originator of the proprietary learningmatrix
is)
Answers
उच्चतर शिक्षा आयोग के दो सदस्यों की नियुक्ति को चुनौती
मानक से कम योग्यता होने का आरोप, कोर्ट ने पूछा योग्यता निर्धारण का मानक
प्रयागराज। उच्चतर शिक्षा आयोग उत्तर प्रदेश के सदस्यों की योग्यता एक बार फिर सवालों के घेरे में है। आयोग के दो सदस्यों की योग्यता को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग के दो सदस्यों डा. हरवंश और डा. कृष्ण कुमार नियुक्ति की योग्यता रखते हैं या नहीं। और सरकार ने किस मापदंड पर इनके शिक्षा के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान का आंकलन किया। कोर्ट ने सरकार को 27 नवंबर तक हलफनामा दाखिल करने का समय दिया है।
प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति की याचिका पर मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर तथा न्यायमूर्ति विवेक वर्मा की खंडपीठ ने सुनवाई कर रही है। याची के अधिवक्ता आलोक मिश्र का कहना है कि नियमानुसार आयोग का सदस्य होने की जो योग्यताएं हैं, वह इन दोनों सदस्यों के पास नहीं हैं। दोनों सदस्य 10 वर्ष तक डिग्री कॉलेज के प्राचार्य का कार्य करने की निर्धारित अर्हता नहीं रखते। ऐसे में आयोग के सदस्य के रूप में इनकी नियुक्ति अवैध है। नियुक्ति रद्द करने की मांग की गई है।
जबकि राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल का कहना था कि डा. हरवंश प्रोफेसर रहे हैं और डॉ कृष्ण कुमार एसोसिएट प्रोफेसर रहे हैं। इनके रिसर्च पत्रिकाओं में छपे हैं। ये प्रख्यात शिक्षाविद् हैं। जिसपर कोर्ट ने यह पूछा कि किस मानक पर यह आंकलन किया गया कि ये प्रख्यात शिक्षाविद रहे हैं। आयोग की तरफ से अधिवक्ता बीएन सिंह ने पक्ष रखा। अगली सुनवाई 27 नवंबर को होगी।
हाईकोर्ट ने पहले भी हटाए हैं सदस्य
उच्च शिक्षा आयोग के सदस्यों की योग्यता को लेकर पहले भी विवाद उठते रहे हैं। इससे पूर्व समाजवादी पार्टी की सरकार में सदस्यों की योग्यता का मामला हाईकोर्ट पहुंचा था। हाईकोर्ट ने आयोग के सदस्य रामवीर सिंह, मिल्कियत सिंह आदि की सदस्यता मानक के अनुरूप न पाते हुए रद्द कर दी थी। योग्यता के सवाल पर ही सपा सरकार के कार्यकाल में लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष रहे अनिल यादव की नियुक्ति भी हाईकोर्ट ने रद्द कर दी थी। इसी प्रकार से माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के सदस्यों को भी सदस्यता गंवानी पड़ी थी।
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1993
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