तदनन्तर बैठी सभा उटज के आगे,
नीले वितान के तले दीप बहु जागे।
टकटकी लगाए
नयन सुरों के थे वे,
परिणामोत्सुक उन भयातुरों के थे वे
उत्फुल्ल करौंदी-कुंज वायु रह
करती थी सबको पुलक-पूर्ण मह महकर।
वह चन्द्रलोक था, कहाँ चांदनी वैसी,
प्रभु बोले गिरा गम्भीर नीरनिधि जैसी।
रहकर,
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ghar pe ja ke soja ghar pe ja ke soja bahut acche se
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