Physics, asked by vimlavimlasingh882, 4 hours ago

तड़ित किसे कहते है? इसका प्रति वज्रपात ओसत शीर्ष सामर्थ्य लिखिए।​

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Answered by dhareaveer
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Answer:

तड़ित (Lightning) या "आकाशीय बिजली" वायुमण्डल में विद्युत आवेश का डिस्चार्ज होना (एक वस्तु से दूसरी पर स्थानान्तरण) और उससे उत्पन्न कड़कड़ाहट (thunder) को तड़ित कहते हैं। संसार में प्रतिवर्ष लगभग 2करोड़ 60 लाख तड़ित पैदा होते हैं।

कड़क के साथ आसमान से गिरने वाली बिजली को तड़ित कहते हैं। आकाश में बादलों के बीच टकराव होती है, यानी घर्षण होने से अचानक एक इलेक्ट्रोस्टेटिक चार्ज निकलती है। अर्थात तूफानी बादलों में विद्युत आवेश पैदा होता है। ये तेजी से आसमान से जमीन की तरफ आता है। इस दौरान हमेंं तेज कड़क के साथ आवाज सुनाई देती है और बिजली की स्पार्किंग की तरह प्रकाश दिखाई देता है इसी पूरी प्रक्रियाा को आकाशीय बिजली कहते हैं।

Explanation:

संभवत: अन्य किसी भी प्राकृतिक घटना ने इतना भय, रोमांच और आश्चर्य उत्पन्न नहीं किया होगा और न ही आज भी करती होगी, जितना तड़ितपात और बादलों की कड़क से उत्पन्न होता है। अनादि काल से संसार के प्राय: सभी देशों में यह विश्वास प्रचलित था कि तड़ित ईश्वर का दंड है, जिसका प्रहार वह उस प्राणी अथवा वस्तु पर करता है जिसके ऊपर वह कुपित हो जाता है। ग्रीक और रोमन देशवासी इसे भगवान जुपिटर का प्रहारदंड मानते थे। आज भी बहुत से लोग ऐसा ही समझते हैं।

विद्युत संबंधी जानकारियों में कुछ वृद्धि होने पर वैज्ञानिकों की यह धारणा बनी कि साधारण तौर पर तड़ित की घटना ठीक उसी प्रकार की होती है जैसा संघनित्र (condenser) को अनाविष्ट (discharge) करते समय उसके प्लेटों के बीच वायु में से होकर स्फुलिंगों का प्रवाह होता है। इस धारणा की पुष्टि करने के लिये प्रयोग करने का साहस किसी को नहीं होता था; किन्तु अन्त में बेंजामिन फ्रैंकलिन (Benjamin Franklin) की प्रेरणा से फ्रांस के दो वैज्ञानिकों, डालिबार्ड (Dalibard) और डेलॉर (Delor), ने प्रयोग करने का निश्चय किया। उन्होंने धातु के दो छड़ लिए। डालिबार्ड का छड़ ४० फुट तथा डेलॉर का छड़ ९९ फूट ऊँचा था। दोनों ही छड़ों से वे लगभग डेढ़ इंच लंबाई तक के स्फुलिंगों का विसर्जन करा सकने में सफल हुए। यह प्रयोग अत्यंत खतरनाक था और आगे चलकर एक अन्य वैज्ञानिक ने यही प्रयोग दोहराते समय अपने प्राणों से ही हाथ धोया था।

फिर भी उपर्युक्त प्रयोग से यह निश्चय न हो सका कि छड़ो में उत्पन्न विद्युत्‌ बादलों से ही आई है, क्योंकि छड़ों की पहुँच बादलों तक नहीं थी। इसलिये बेंजामिन फ्रैंकलिन ने अपना पतंगवाला सुविख्यात प्रयोग किया। उसने एक पतंग उड़ाई और उसे बादलों के अंदर तक पहुँचाया। ज्योंहि पतंग की डोर भीगी, पतंग और डोर दोनों ही तन गए जिससे यह पता चला कि दोनों विद्युत्‌ आवेश युक्त हो गए है। उस डोर में फ्रैंकलिन ने एक चाबी बाँध भी दी थी। चाभी के पास उँगली ले जाने से दोनों के चटचटाहट की आवाज के साथ स्फुलिंगों का विसर्जन हुआ। इतना ही नहीं, उस चाभी का स्पर्श लीडन जार (Leyden Jar) से कराकर उसने उसे आवेशित भी कर लिया। इससे यह निश्चित हो गया कि बादलों में भी विद्युत्‌ होती है। इस विद्युत्‌ के स्फुलिंग रूप में विसर्जन को ही "तड़ित' कहते हैं। यह विसर्जन बादल और बादल, अथवा बादल और पृथ्वी, के बीच हो सकता है।

तड़ित की उत्पत्ति

तड़ित प्राय: कपासीवर्षी (cumulonimbus) मेघों में उत्पन्न होती है। इन मेघों में अत्यंत प्रबल ऊर्ध्वगामी पवनधाराएँ चलती हैं, जो लगभग ४०,००० फुट की ऊँचाई तक पहुँचती हैं। इनमें कुछ ऐसी क्रियाएँ होती हैं जिनके कारण इनमें विद्युत्‌ आवेशों की उत्पत्ति तथा वियोजन होता रहता है।

इन क्रियाओं के स्पष्टीकरण के लिए विल्सन, सिंपसन, सक्रेज (Scrase) आदि ने अपने सिद्धांत प्रस्तुत किए हैं, जो परस्पर विरोधी जान पड़ते हैं, किंतु इतना तो सभी बतलाते हैं कि तड़ित की जननप्रक्रिया मेघों में होती है और इसके लिये उन मेघों में विद्यमान जलसीकर, अथवा हिमकण आदि अवक्षेपण कण (precipitation particles), ही उत्तरदायी होते हैं। बादलों में विद्युद्वितरण के संबंध में भी सभी एकमत हैं कि इनके ऊपरी स्तर धनाविष्ट तथा मध्य और निम्नस्तर ऋणाविष्टि होतें हैं। इन आवेशों का विभाजन मेघों के अंदर शून्य डिग्री सें॰ तापवाले स्तरों के भी काफी ऊपर होता है। इससे यह निष्कर्ष सहज ही प्राप्त होता है कि आवेशविभाजन मेघों में बनने वाले हिमकणों तथा ऊर्ध्वगामी पवनधाराओं से ही होता है, जल की बूँदों से नहीं। कभी-कभी निम्न स्तर में भी कहीं-कहीं धनावेशों का एक केंद्र सा बन जाता है।

बादलों के निम्न स्तरों पर ऋणवेश उत्पन्न हो जाने के कारण नीचे पृथ्वी के तल पर प्रेरण द्वारा धनावेश उत्पन्न हो जाते हैं। बादलों के आगे बढ़ने के साथ ही पृथ्वी पर के ये धनावेश भी ठीक उसी प्रकार आगे बढ़ते जाते हैं। ऋणावेशों के द्वारा आकर्षित होकर भूतल के धनावेश पृथ्वी पर खड़ी सुचालक या अर्धचालक वस्तुओं पर ऊपर तक चढ़ जाते हैं। इस विधि से जब मेघों का विद्युतीकरण इस सीमा तक पहुँच जाता है कि पड़ोसी आवेशकेंद्रों के बीच विभव प्रवणता (potential gradient) विभंग मान तक पहुँच जाती है, तब विद्युत्‌ का विसर्जन दीर्घ स्फुलिंग के रूप में होता है। इसे तड़ित कहते हैं। पृथ्वी की ओर आनेवाली तड़ित कई क्रमों में होकर पहुँचती है। बादलों से इलेक्ट्रानों का एक हिल्लोल १ माइक्रो सेकंड (1x10E-६ सेकंड) में ५० मीटर नीचे आता है और रुक जाता है। लगभग ५० मा॰ से॰ के पश्चात्‌ दूसरा क्रम आरंभ होता है और इसी प्रकार कई क्रमों में होकर अंत में यह तरंग पृथ्वी तक पहुँचती है। इसे प्रमुख आघात (Leader stroke) कहते हैं। अपने उद्गमस्थल से पृथ्वी तक पहुँचने में इसे कुल ०.००२ सेकंड तक का समय लगता है।

Answered by yassersayeed
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तड़ित:

  • तड़ित  या "आकाशीय बिजली" वायुमण्डल में विद्युत आवेश का  डिस्चार्ज होना और उससे उत्पन्न कड़कड़ाहट को तड़ित कहते हैं।  
  • कड़क के साथ आसमान से गिरने वाली बिजली को तड़ित कहते हैं।
  • आकाश में बादलों के बीच टकराव होती है, यानी घर्षण होने से अचानक एक इलेक्ट्रोस्टेटिक चार्ज निकलती है। अर्थात तूफानी बादलों में विद्युत आवेश पैदा होता है।
  • ये तेजी से आसमान से जमीन की तरफ आता है। इस दौरान हमेंं तेज कड़क के साथ आवाज सुनाई देती है और बिजली की स्पार्किंग की तरह प्रकाश दिखाई देता है इसी पूरी प्रक्रियाा को आकाशीय बिजली कहते हैं।

सामान्यतया तड़ित तीन प्रकार की होती है:

(१) विस्तृत तड़ित काफी विस्तृत क्षेत्र पर होती है और इसका अविरल प्रकाश बादलों पर काफी दूर तक फैल जाता है।

(2) धारीदार या रेखावर्ण तड़ित अक्सर दिखलाई पड़ती है। इसमें एक या अधिक प्रकाशरेखाएँ, सीधी या टेढ़ी इधर-उधर दौड़ती हुई दृष्टिगोचर होती हैं।

इसमें विद्युद्विसर्जन बादल से बादल में, बादल से धरती में अथवा बादल से वायुमंडल के बीच होता। यह तड़ित स्वयं तीन प्रकार की हो सकती:

  •  मनकामय तड़ित  
  • द्विशाखित तड़ित  
  • उष्मा तड़ित

(३) कंदुक तड़ित एक ज्योतिर्मय गेंद की भाँति पृथ्वी की और आती हुई दिखलाई पड़ती है।  

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