तयार पगाए|
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निम्न शिक्षा के आधार पर लगभग 100-120 शब्दों में एक लघुकथा लिखिए ।
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शिक्षा भाग्य भी उसी का साथ देता है जो कर्म में विश्वास रखते हैं जबकि भाग्य के भरोसे हाथ
पर हाथ रखे बैठे रहने वालों का विनाश होता है।
Answers
Answer:
भाग्य को न कोसो, कर्म पे ध्यान दो
Explanation:
किसी गांव में एक गरीब किसान था। घर में उसकी पत्नी और वो दो ही लोग थे। उनके दिन गरीबी में गुजर रहे थे। किसान के पास कुल जमा एक गाय और दो बोरी अनाज ही था। पति-पत्नी दोनों ही दिन-रात अपने भाग्य को कोसते रहते, भगवान से शिकायत करते कि उन्हें इतना गरीब क्यों बनाया। इसी तरह से दोनों के दिन गुजर रहे थे।
एक दिन गांव में एक साधु आया। वो गांव भर में भिक्षा मांगता हुआ उस किसान के घर भी पहुंचा। जैसे ही साधु ने किसान के घर आवाज लगाई, उसकी पत्नी और उसने अपने भाग्य को कोसना शुरू कर दिया। तुम्हें हम क्या दान दें महाराज, हमारा तो खुद का जीवन भिखारियों सा ही गुजर रहा है। ना कपड़े हैं ढंग के ना घर में अनाज है। भगवान हमारे साथ इतना अन्याय कर रहा है जबकि हमने तो किसी का कुछ बिगाड़ा भी नहीं है।
साधु उनकी समस्या समझ गया। उसने कहा देवी भाग्य भगवान नहीं बनाता, हमारे कर्म ही भाग्य बनाते हैं। भगवान तो केवल कर्मों का फल दे रहा है। किसान और उसकी पत्नी ने फिर जवाब दिया बाबा हमने ऐसे कौन से पाप किए हैं जो ऐसा जीवन भुगत रहे हैं। हमने तो कभी कोई पाप किए ही नहीं लेकिन कभी भी घर में एक गाय और दो बोरी अनाज से ज्यादा कुछ रहता ही नहीं। साधु ने कहा अगर तुम ज्यादा धन चाहते हो तो मैं एक उपाय सुझाता हूं, अगर तुम मेरा कहना मानोगे तो जरूर तुम्हारे पास भी बहुत धन और सम्पत्ति होगी।
दोनों पति-पत्नी साधु के चरणों में बैठ गए। दोनों ने कहा कि जो आप कहेंगे हम वो करेंगे। साधु ने कहा तो सबसे पहले अपनी ये गाय और दो बोरी अनाज इसे भी बाजार में जाकर बेच दो। पति-पत्नी दोनों सहम गए। महाराज अगर ये भी बेच दिया तो हमारे पास तो कुछ बचेगा ही नहीं, हम तो और कंगाल हो जाएंगे। दोनों ने जवाब दिया।
साधु ने समझाया मैं जो कह रहा हूं वैसा करो, अगर नुकसान हुआ तो भरपाई मैं कर दूंगा, मैं तुम्हें फिर से एक गाय और दो बोरी अनाज ला दूंगा। डरते-डरते दोनों राजी हुए। किसान ने बाजार में जाकर गाय और अनाज को बेच दिया। धन लेकर घर लौटा। फिर साधु ने कहा अब एक काम करो, इस धन से उन गरीबों को भोजन कराओ जिनके पास खाने को कुछ नहीं है। किसान ने वैसा ही किया। कई गरीबों को भोजन करा दिया। ये बात गांव जमींदार को पता चली कि गरीब किसान ने अपनी गाय और अनाज बेचकर भूखों को खाना खिला दिया।
उसने तुरंत अपने सेवक को भेजकर किसान के घर एक गाय और दो बोरी अनाज भिजवा दिया। साधु ने फिर किसान से कहा कि इसे भी बेचकर आओ और कल फिर गरीबों को भोजन कराओ। किसान ने फिर ऐसा ही किया। तो फिर किसी ने उस किसान को दान में एक गाय और दो बोरी अनाज भिजवा दिए। साधु के कहने पर किसान रोज गरीबों को इसी तरह भोजन कराता रहा और उसके यहां रोज दान आने लगा। लोग उसकी मदद करने लगे कि ये किसान गरीब होकर भी भूखों को भोजन कराता है।
धीरे-धीरे उस किसान की ख्याति दूसरे गांवों में भी फैल गई। धीरे-धीरे दान आने का दायरा बढ़ता गया। बहुत दिन गुजर गए। किसान गरीब से सम्पन्न हो गया। उसने एक दिन साधु से पूछा कि अचानक मेरे भाग्य में इतना अनाज और धन कैसे आ गया। साधु ने उसे समझाया कि तू इस धन से दूसरों को भोजन करा रहा है ये उन्हीं के भाग्य का धन है जो भगवान तुझे दे रहे हैं।
कहानी का सार story with moral : मेहनत और किस्मत Mehanat aur Kismat ki Kahani
हमेशा अपनी असफलताओं और दुर्भाग्य के लिए भाग्य या भगवान को कोसना ठीक नहीं है। अपने कर्म बदलकर देख लें। संभव है कि हमारे कर्म ही ऐसे ना हो कि भाग्य उसमें साथ दे।
मेहनत और किस्मत Mehanat aur Kismat ki Kahani इस कहानी में मेहनत और किस्मत के खेल को देखा ये चाहे तो इन्सान बुलंदी और नहीं तो वहीँ खाक छानते बैठा रहता है.