tell a story on any muhavre in hindi it should be long enough for 2 mins
Answers
Answer:
Explanation:
नमस्कार दोस्तों आज में आपके लिए लाया कुछ अलग तरह की कहानिया जो आपने कभी नहीं पढ़ी होंगी आज हम आपके लिए है कहावतों की 15 श्रेठ कहानियाँ जो आपको रोचक , ज्ञानवर्धक और मनोरंजन से भरवूर है अगर आप में ढूंढ रहे है तो भी ये आपके लिए बहुत उपयोगी होंगीकुंभज नामक एक कुम्हार बहुत सुंदर घड़ेसुराही, गमले आदि बनाता था। उसके बनाए सामान की मांग दूरदूर तक थी। वह अपना काम पूरी ईमानदारी और निष्ठा से करता था। उसके पास एक छोटा-सा कमरा था । और बाहर बहुत बड़ा चौक। वह अपने सभी मिट्टी के बर्तनों को बनाकर उन्हें चौक में सुखाता था। उसके चौक में बहुत अच्छी और गहरी धूप आती कुंभज अपने जीवन में दिनरात परिश्रम कर बेहद खुश रहता था।
वह अभी अविवाहित था। उसने सोचा हुआ था कि जब मैं अपनी मेहनत से कुछ रुपये इकट्ठे कर एक बढ़िया-सा घर बना लूगा तभी विवाह कलंगा और फिर विवाह के लिए रुपये भी तो चाहिए।सुबह उठते ही वह पूरा चौक साफ़ करता। इसके बाद दैनिक दिनचर्या से निवृत्त होकर व्यायाम करता। उसका बदन भी गठीला और रौबदार था। इसके साथ ही वह बच्चों से भी प्रेम करता था। बच्चे जबतब उसके चौक में आकर सुंदर-सुंदर मिट्टी के बर्तनों को निहारते और कुंभज से उन्हें बनाने की प्रक्रिया सीखते। कुंभज को इन सब में एक असीम आनंद व सुख मिलता था।वह बहुत होशियार था। हर बात को गहराई से समझ कर ही किसी काम में हाथ डालता था। भज के बर्तन हमेशा चौक में ही रहते थे इसलिए उसे उस समय खासी दिक्कत का सामना करना पड़ता था जब चौमासे होते थे या बेमौसम बरसात आती थी।
इसके लिए उसने एक बड़ा तिरपाल लाकर रखा हुआ था और जैसे ही मौसम के मिजाज को देखकर उसे लगता कि बारिश होने के टांग देता उसके । इससे आसार हैं तो वह तुरंत अपने तिरपाल को चौक पर बर्तन बच जाते थे।
थी। वह मूसलाधार बना रहा था तो अचानक एक दिन जब वह अपने बर्तनों को आंधी-सी चलने लगी। हवाओं की नमी बा।ि मौसम के तेवर बदल गए। का संकेत देने लगी। बहतीबहती पुरवइया कुंभज को बेहद पैसा
का उठा ही रहा था कि तभी बड़ीबड़ी जोर जोर से अभी पुरवइया आनंद बादल गरजने लगे।
बादलों की गर्जन इतनी भयानक थी कि उनकी गड़गड़ाहट सुनकर कांप उठा। उसे लगा कि आज तो बारिश होगी और तेज हवाओं के झोंके व आंधी उसके तिरपाल को हवन उड़ा देंगे।
यह सोचकर वह चौक के कोनों पर मजबूत कीलें बांधकर उस तिरपाल को बांधने लगा। कुछ ही देर में उसने जल्दी-जल्दी चारों कोनों में।
मजबूत कीलें ठोककर तिरपाल को बांध दिया। लेकिन इतने में ही उसने देखा कि जो बादल जोर-जोर से गरजगरज कर सबको डरा रहे थे।
पानी की एक बूंद तक न थी और उस दिन बारिश की एक बूंद तक टपकी। मौसम का ऐसा मिजाज देखकर कुंभज हैरान होकर मुस्करा उठा और अपने काम में लग गया। इसी प्रकार दिन बीतते रहे।
एक दिन कुंभज के पास उसका दूर का भाइ अंबुज आया। कुंभज चौक में अंबुज के साथ बातें करता हुआ बर्तन बना रहा था तभी एकाएक जोर से हवाएं चलने लगीं और मौसम का रुख बदल कर आसमान में बादलों की गर्जना गूंज उठी। उनकी गूंज से अंबुज भी कांप उठा और बोला“भइयाऐसा लगता है कि आज तो आपके इलाके में मूसलाधार बारिश होगी।
ऐसे में आपके मिट्टी के बनाए सारे बर्तन तो टूटफूट जाएंगे। क्या आपने इनसे निपटने के लिए कोई इंतजाम नहीं किया हुआ है?” अंबुज की बात सुनकर कुंभज बोला, “अरे अंबुज घबराने की कोई बात नहीं है। जो गरजते हैं वो बरसते नहीं।
अभी कुछ देर में मौसम जाएगाजहां तक ही शांत हो । हां, तुम यह पूछ रहे थे कि मैंने बारिश से बचने के लिए इंतजाम किए हैं या नहीं तो मेरे भाई वो मैंने अच्छी तरह से किए हुए हैं।” इसके बाद कुंभज ने बताया कि किस
प्रकार उसने तिरपाल को मजबूती से दीवार के कोनों से बांधकर एक छतसी बनाई हुई है जो न सिर्फ वर्षा में अपितु तेज गर्मी व सर्दी में भी उसका बचाव करती है। कुछ देर बाद ही अंबुज ने बादलों की ओर निहारा।
तो पाया कि सचमुच गजरने वाले बादलों में पानी की एक बूंद नहीं थी और सभी कुछ भी हो था। बादलों को के बाद शांत गया देखने अंबुज कुंभज से बोला , “हां भाई! तुम सही कहते हो-जो गरजते हैं, वो बरसते नहीं।”
इस प्रकार तभी से यह कहावत चल पड़ी कि ‘जो गरजते हैं, वो बरसते नहीं।’