tenali Rama stories in hindi
Answers
Answer:
अदृश्य वस्त्र
एक दिन राजा कृष्णदेव राय के राज दरबार में एक स्त्री आई. वह सौंदर्य की प्रतिमूर्ति थी. उसका सौंदर्य देख हर कोई मंत्र-मुग्ध रह गया.
स्त्री राजा का सादर अभिवादन कर बोली, “महाराज, मैं एक बुनकर हूँ. मैं हर प्रकार की बुनाई में पारंगत हूँ और अपने सहयोगियों के साथ जादुई वस्त्र निर्मित करने की दिशा में प्रयोग कर रहे हैं. अपने बुने वस्त्र का एक नमूना मैं आपके लिए लाई हूँ.”
इतना कहकर उसने हाथ में पकड़ी एक माचिस की डिबिया खोली और उसमें से एक सिल्क की साड़ी निकाली. उस साड़ी का कपड़ा अत्यंत मुलायम और हल्का थी. उसने वह साड़ी राजा को भेंट कर दी. राजा वह साड़ी देख आश्चर्यचकित रह गए..
राजा बोले, “त्तुम्हारा काम देख हम प्रसन्न हैं. आज तक बुनकरी का इतना शानदार नमूना हमने नहीं देखा.”
स्त्री बोली, “महाराज, मैं और मेरे सहयोगी एक विशेष तकनीक पर काम कर रहे हैं. उसी तकनीक से हमने इस वस्त्र को निर्मित किया है. साथ ही हम एक ऐसे वस्त्र भी बना रहे हैं, जो इस साड़ी से भी मुलायम, पतले और हल्के हों. उसे ईश्वरीय वस्त्र कहा जा सकता है, क्योंकि वैसे वस्त्र मात्र देवतागण धारण करते हैं.”
राजा बोले, “बहुत अच्छी बात है. बताओ, किस प्रयोजन से हमारे पास आई हो?’
स्त्री बोली, “महाराज, मैं आपकी सहायता की आस में आई हूँ. यदि आप हमारी योजना के लिए धन प्रदान कर दें, तो आपका बड़ा उपकार होगा.”
राजा बोले, “अवश्य, हम नई तकनीक विकसित करने के समर्थक रहे हैं. हम अवश्य तुम्हारी योजना के लिए धन प्रदान करेंगे. किन्तु, समय-समय पर तुम्हें हमें अपनी योजना की प्रगति से अवगत कराना होगा और योजन पूर्ण होने के उपरांत सर्वप्रथम वह वस्त्र हमें दिखाना होगा.”
स्त्री प्रसन्न हो गई और सिर झुकाकर बोली, “महाराज, मैं उस योजना में बुना पहला वस्त्र आपको भेंट करूंगी.”
राजा ने राजकोष से उसे स्वर्ण मुद्राओं से भरी थैली दिलवा दी. थैला लेकर वह प्रसन्नतापूर्वक चली गई.
समय बीतने लगा. किंतु, बुनकर स्त्री ने अपनी योजना की प्रगति से राजा को अवगत नहीं कराया. राजा चिंतित हुए और अपने मंत्रियों और सेवकों को कार्य की प्रगति का मुआइना करने बुनकार स्त्री के पास भेजा.
जब मंत्री और सेवक बुनाकरशाला में पहुंचे, तो चकित रह गए. वहाँ करघे पर सात व्यक्ति पूरी तन्मयता से वस्त्र बुन रहे थे. किन्तु, करघे पर कोई वस्त्र नहीं था, न ही कोई बुना हुआ वस्त्र वहाँ रखा था.
वे वापस लौट आई और सारी जानकारी राजा को दी. राजा क्रोधित हो गए और तत्काल बुनकर स्त्री को प्रस्तुत करने का आदेश दिया.
बुनकर स्त्री दरबार में उपस्थित हुई. उसके साथ एक कन्या भी थी, जो हाथ में थाल लिए हुए थी.
वह बोली, “प्रणाम महाराज, मेरी भेंट स्वीकार करें. ये उस ईश्वरीय वस्त्र का नमूना है, जिसके संबंध में मैंने आपको बताया था. इस वस्त्र की विशेषता यह है कि यह केवल उस व्यक्ति को ही दिखाई पड़ता है, जो बुद्धिमान और चतुर है. मूर्ख व्यक्तियों के लिए यह अदृश्य है. देखिये महाराज, इतना शानदार वस्त्र आपने पहले कभी नहीं देखा होगा.”
कहकर उसने अपने साथ आई कन्या को इशारा किया और उस कन्या ने थाल राजा के सामना ले जाकर रख दी.
राजा और मंत्रियों ने देखा कि वह थाली खाली है. किंतु, स्त्री ने सबको अपनी बातों के जाल में उलझा दिया था. यदि कोई ये कहता कि उन्हें वस्त्र दिखाई नहीं पड़ रहा, तो मूर्ख कहलाता. कोई मूर्ख नहीं कहलाना चाहता था.
इसलिए सभी एक स्वर में बोले, “अतिसुंदर……कारीगरी का ऐसा नामूना तो हमने पहले कभी नहीं देखा. ऐसा अद्वितीय वस्त्र मात्र महाराज को ही शोभा दे सकता है.”
राजा उलझन में पड़ गए, क्योंकि उन्हें वस्त्र दिखाई नहीं दे रहा था. किंतु, वे ये बात कह नहीं सकते थे. अगर कहते, तो मूर्ख कहलाते और नहीं कहने पर वह स्त्री स्वर्ण मुद्राएं हड़प लेती.
उन्होंने तेनालीराम को अपने पास बुलाया और बोले, “तेनालीराम, तुम तो सारा माज़रा समझ रह हो. अब तुम ही समाधान निकालो.”
तेनालीराम ने मुस्कुराते हुए उस स्त्री से कहा, “देवी, आपकी कला वाकई बेमिसाल है. महाराज भी उपहार स्वरुप इस ईश्वरीय वस्त्र को देखकर बहुत प्रसन्न हैं. मगर उनकी इच्छा है कि पहले इसे धारण कर दरबार में सबको दिखायें, ताकि सभी इसकी सुन्दरता की प्रशंसा कर सकें.”
स्त्री राजा को धोखा देकर धन हड़पना चाहती थी. किंतु, अब उसकी पोल खुल चुकी थी. वह उस वस्त्र को कैसे पहन सकती थी, जो था ही नहीं. कोई चारा न देख वह राजा के पैरों पर गिर गई और क्षमायाचना करने लगी.
स्त्री होने के कारण और गलती स्वीकार कर लेने के कारण राजा ने दया प्रदर्शित करते हुए उसे क्षमा कर दिया. किंतु, उस स्त्री को स्वर्ण मुद्राओं की थैली वापस करनी पड़ी.
Explanation:
here's one
I read it. its amazing!