मैं तो सबका हूँ
और जी भर के पिएँ ।
छोटी-छोटी सांस्कृतिक नदियाँ
दौड़ी-दौड़ी आती हैं
मुझमें सभ्यताएँ समाती हैं
घुल-मिल जाती हैं
लेकिन क्या बताऊँ
और कैसे कहूँ
कभी-कभी
बहता हुआ आता है लहू
जब मेरे घाटों पर
खनकती हैं तलवारें
गूँजती हैं टापें
गरजती हैं तोपें
होते हैं धमाके
और शहीद होते हैं
रणबांॅकुरे बांॅके,
मैं नहीं पूछता
कि वे थे कहाँ के ।
मैं नहीं देखता
कि वे यहाँ के हैं
कि वहाँ के ।
मैं तो सबके घाव धोता हूँ
विधवा की आँखों में
आँसू बनकर मैं ही तो रोता हूँ ।
ऐसे बहूँया वैसे
प्यारे मनुष्यों, बताऊँ कैसे
मैं सिंधु में बिंदु हूँ,
बिंदु में सिंधु हूँ,
लहराते बिंबों में
झिलमिलाता इंदु हूँ I
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पता नहीं
pls mark as brainliest
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अर्थ लिखीएलभलभभददढदडदडदडदढभलभलभलभलभल
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