ठ भैया कृष्ण! भेजती हूँ मैं अपनी राखी तुमको आजा ! कई बार भेजा है, सजा सजाकर नूतन साज।। लो आओ भुजदंड उठाओ, इस राखी में बँध जाओ। भारत-भूमि की राजपूती को, एक बार फिर दिखलाओ। वीर चरित्र राजपूतों का पढ़ती हूँ मैं राजस्थान। पढ़ते-पढ़ते आँखों में छा जाता राखी का आख्यान।। मैंने पढ़ा, शत्रुओं को भी जब-जब राखी भिजवाई। रक्षा करने दौड़ पड़े, वे राखी बंद शत्रु भाई।। किंतु देखना है, यह मेरी राखी क्या दिखलाती है।
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राखी: सुभद्रा कुमारी चौहान...
Kavya Desk काव्य डेस्क
राखी पर्व
Irshaad
भैया कृष्ण ! भेजती हूँ मैं
राखी अपनी, यह लो आज।
कई बार जिसको भेजा है
सजा-सजाकर नूतन साज।।
लो आओ, भुजदण्ड उठाओ
इस राखी में बँध जाओ।
भरत-भूमि की रजभूमि को
एक बार फिर दिखलाओ।।
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वीर चरित्र राजपूतों का...
वीर चरित्र राजपूतों का
पढ़ती हूँ मैं राजस्थान।
पढ़ते - पढ़ते आँखों में
छा जाता राखी का आख्यान।।
मैंने पढ़ा, शत्रुओं को भी
जब-जब राखी भिजवायी।
रक्षा करने दौड़ पड़ा वह
राखी-बन्द-शत्रु-भाई।।
राखी क्या दिखलाती है...
किन्तु देखना है, यह मेरी
राखी क्या दिखलाती है।
क्या निस्तेज कलाई पर ही
बँधकर यह रह जाती है।।
देखो भैया, भेज रही हूँ
तुमको-तुमको राखी आज।
साखी राजस्थान बनाकर
रख लेना राखी की लाल।।
Answer:
ठ भैया कृष्ण! भेजती हूँ मैं अपनी राखी तुमको आजा ! कई बार भेजा है, सजा सजाकर नूतन साज।। लो आओ भुजदंड उठाओ, इस राखी में बँध जाओ। भारत-भूमि की राजपूती को, एक बार फिर दिखलाओ। वीर चरित्र राजपूतों का पढ़ती हूँ मैं राजस्थान। पढ़ते-पढ़ते आँखों में छा जाता राखी का आख्यान।। मैंने पढ़ा, शत्रुओं को भी जब-जब राखी भिजवाई। रक्षा करने दौड़ पड़े, वे राखी बंद शत्रु भाई।। किंतु देखना है, यह मेरी राखी क्या दिखलाती है।
Explanation:
ठ भैया कृष्ण! भेजती हूँ मैं अपनी राखी तुमको आजा ! कई बार भेजा है, सजा सजाकर नूतन साज।। लो आओ भुजदंड उठाओ, इस राखी में बँध जाओ। भारत-भूमि की राजपूती को, एक बार फिर दिखलाओ। वीर चरित्र राजपूतों का पढ़ती हूँ मैं राजस्थान। पढ़ते-पढ़ते आँखों में छा जाता राखी का आख्यान।। मैंने पढ़ा, शत्रुओं को भी जब-जब राखी भिजवाई। रक्षा करने दौड़ पड़े, वे राखी बंद शत्रु भाई।। किंतु देखना है, यह मेरी राखी क्या दिखलाती है।