दिए गए संकेत बिंदुओं के
आधार पर लगभग 100 शब्दों में अनुच्छद लिखिए
मजहब नहीं सिखाता में बैर रखना
•विभिन्न धर्मों में निहित एकता और मानवता की भावना
• स्वार्थी तत्वों द्वारा धर्म का गलत प्रयोग
•राजनिति द्वारा धर्मो का इस्तमाल
•धर्म मित्रता सदभाव और आनंद का प्रतीक
Answers
धर्म का अर्थ है, धारण करना, अर्थात जिसे धारण किया जा सके वही धर्म है। धर्म मे कर्मो को प्रधानता दी गयी है। अर्थात धर्म, कर्म प्रधान होता है। धर्म को गुण भी कह सकता है। धर्म सजीव व निर्जीव वस्तुओ मे समान रूप से विधमान होता है। विभिन्न धर्मो मे धर्म की अलग अलग व्याख्या की गयी है।
जैन धर्म के अनुसार "वत्थु सहावो धम्मो" अर्थात वस्तु का स्वभाव ही धर्म है। प्रत्येक वस्तु का कोई ना कोई धर्म होता है। जैसे अग्निका स्वभाव स्वभावता है और जल का स्वभाव शीतलता है। प्रत्येक वस्तु अपने मूल स्वभाव को नहीं छोड़ती है। अन्य वस्तु का संयोग पाकर स्वभाव मे परिवर्तन हो जाता है। अपने कर्मो और दायित्वो का पालन करना भी धर्म है। यह तो जोड़ा गया धर्म की परिभाषा है।
अब हम मूल मुद्दे पर आते है, प्रश्न क्या धर्म व्यक्ति के जीवन से बड़ा है? निश्चय ही धर्म व्यक्ति से बड़ा है, बटेक जीवन से बड़ा नहीं है। धर्म हमे अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है, ना की हिंसा करने के लिए। क्यूकि किसी भी धर्म के ग्रंथ उठा कर आप देख ले, उसमे जीव दया को ही धर्म माना गया है। कही भी यह नहीं कहा गया है अगर कोई इन्सान धार्मिक नहीं है या वह नास्तिक है तो उसे मार दो। वास्तव में जो लोग ऐसा करते हैं, वे मूलरूप मे धर्म को जानते ही नहीं हैं या उन्होने धर्म को धारण ही नहीं किया है।
वे तो केवल उन्मादि होते हैं। उनहे मूलता मे धर्म से कोई लेना देना नहीं होता है। वे ऐसा केवल बहकावे मे आकर या उन्माद मे ऐसा करते है। क्यूकि धर्म गुरु या धार्मिक नेता अपने प्रवचनो या भाषणो मे ऐसा उन्माद भरते है की लोगो को लगता है की जो यह कह रहा है वह बिल्कुल सही है। हमे अपने धर्म को बचाने के लिए दुसरे धर्मो के लोगो को खत्म कर देना चाहिए। जबकि वे ये नहीं समझते कि जीव दया ही सबसे बड़ा धर्म है। इस तरह लोगो को मारने से कुछ भी हासिल नहीं होगा। अपितु हमारे ही कर्म बन्धेगें और कभी ना कभी उन बुरे कर्मो को हमे ही भुगतना पडगे।
इसलिए अच्छे कर्मों और अपनी बुद्धि और विवेक को जागृत किसा। किसी की बातो का पालन करने से पहले उसे अपने विवेक की कसौटी पर पूछिये। हमेशा केवल धर्म गुरु या नेता सही नहीं होते हैं।
धर्म इंसानो के लिए बना है, ताकि इंसान अपने सुख दुःख की बाते अपने अल्लाह, भगवान या गॉड से कह सके। धर्म इंसान की जिंदगी में खुशियां लाने के लिए बना है, ना की धर्म के नाम पर आपस मे लड़ने के लिए। धर्म के नाम पर लड़ने से हमारे धर्म का और धर्म के मानने वालों का अपमान होता है।
धर्म इंसानो के बीच मे मोहब्बत फैलाने के लिए बना है, आपस मे नफरत फैलाने के लिए नहीं। आज लोग अपने धर्म को अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करते हैं। लोग सिर्फ अपने ही धर्म को अच्छा मानते हैं। अगर सिर्फ एक ही धर्म अच्छा होता है तो खुदा एक ही धर्म बनाता है। खुदा विविधता में एकता चाहता है, इसके लिए उसने इतने सारे धर्म बनाये हैं। वह सिर्फ इतना ही चाहती है कि कोइ किसी के ऊपर जुल्म न करे। जिसको धर्म पसंद है वो धर्म धर्म हो सकता है।
एक तरीके से देखा जाए तो एक ही धर्म मे सारे धर्म छिपे हुवे है। जैसे ईश्वर एक है उसी धर्म भी एक ही है। हम अपनी आँखों से अलग अलग धर्मो को देखते है। अगर शुद्ध आत्मा की आँखों से देखो तो एक ही धर्म नज़र आएगा।
लोग धर्म के नाम पर लोगो को इस लिए मारते हैं, क्योंकि उन्हें सिर्फ उनका ही धर्म अच्छा लगता है। दूसरे धर्म के लोग उन्हें पसंद नहीं आते हैं। इंसानो को अगर सभी धर्म अच्छे लगेंगे तो वो कभी आपस मे लड़ेंगे ही नहीं।