दिए गए शब्दों से रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(क) अंक्षाश वृत्त विषुवतवत्त के समानांतर होते हैं।
(ख) विषुवत वृत्त पर देशान्तरल रेखाओं की बीच की दूरी सबसे अधिक होती है।
(ग) यह
पृथ्वी को दो गोलार्धा में बाँटती है।
(घ) उतरी ध्रुव वृत्त को
भी कहा जाता है।
(ङ) प्रथम मध्याह्न रेखा के समय को
समय भी कहा जाता है।
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Answer:
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Explanation:
संस्कृत को आमतौर पर बहुत जटिल विषय माना जाता है। ऐसा विषय, जिसे पढ़ना और समझना केवल पुरोहित वर्ग के ही बस की बात होती है। सच्चाई यह है कि थोड़े से सामान्य ज्ञान की मदद से इसे आसानी से पढ़ना और लिखना सीखा जा सकता है और ये दोनों प्रक्रियाएं एक जैसी ही होती हैं। इस बारे में बता रहे हैं हमारे विशेषज्ञ
परीक्षा में हमें लिखना होता है, इसलिए अगर हम तैयारी के दौरान ही लिख-लिख कर अभ्यास करें तो अच्छे अंक आने की संभावना अधिक रहती है। आज की गलाकाट प्रतियोगिता में अंकों की होड़ मची हुई है। कहीं भी एडमिशन लेना हो, अंक देखे जाते हैं। अत: अच्छे भविष्य का निर्माण करना हो तो अधिक से अधिक अंक अर्जित करने होंगे। संस्कृत में अधिक अंक कैसे पाए जाएं, इसके लिए कुछ बातों पर विशेष ध्यान देना होगा।
संस्कृत का प्रश्नपत्र चार भागों में बंटा होता है। अत: यह अवश्य ध्यान देना चाहिए कि एक भाग या खंड का उत्तर एक साथ लिखा जाए। इससे परीक्षक को उत्तर पुस्तिका जांचने में सुविधा होती है, जिसका सीधा लाभ परीक्षार्थी को मिलना तय है।
प्रश्नपत्र का पहला भाग खंड ‘क’ 10 अंकों का होता है। इसमें एक अपठित गद्यांश दिया जाता है एवं उसी गद्यांश के आधार पर प्रश्नों के उत्तर लिखने होते हैं। सबसे पहले गद्यांश को एक बार ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए। इससे उसका विषय तथा तथ्य समझ में आ जाएगा। महत्वपूर्ण अपठित गद्यांश का पहले से भी अभ्यास किया जा सकता है।
अपठित गद्यांश में चार प्रश्न होते हैं, जिसमें पहले प्रश्न का उत्तर एक शब्द में देना होता है। छात्र कभी-कभी इसका उत्तर पूरे वाक्य में लिख देते हैं, जो गलत है। गद्यांश के तीसरे प्रश्न में विलोम शब्द, संज्ञा-सर्वनाम, विशेष-विशेषण, कर्ता-क्रिया संबंध आदि पूछा जाता है। चौथे प्रश्न में शीर्षक लिखना होता है। शीर्षक को एक या दो शब्दों में लिखा जाना चाहिए, न कि पूरे वाक्य में। ध्यान रहे कि शीर्षक गद्यांश के भाव से मेल खाता हो।
प्रश्नपत्र का द्वितीय भाग ‘ख’ है, जो 15 अंकों का होता है। इसमें पहले एवं दूसरे प्रश्न में मन्जूषा में दिए शब्दों की सहायता से ‘पत्र’ एवं लघुकथा के रिक्त स्थानों की पूर्ति करनी होती है। इसमें सबसे पहले दिए गए शब्दों को खाली स्थान में रख कर यह देख लेना चाहिए कि उसका भाव या अर्थ ठीक निकल रहा है या नहीं। अगर शब्द सही स्थान पर लगाया गया है और अर्थ भी ठीक निकल रहा है तो उत्तर भी सही होगा।
तीसरे प्रश्न में मन्जूषा की सहायता से एक छोटा अनुच्छेद लिखना होता है। अनुच्छेद लिखते समय वाक्य छोटे हों, साथ ही कर्ता-क्रिया सटीक हो तथा वचन प्रयोगकर्ता के अनुसार हो।
प्रश्नपत्र का तृतीय भाग खंड ‘ग’ है, जो 30 अंकों का होता है। इसके सारे प्रश्न यानी संधि, समास, प्रकृति-प्रत्यय, कर्ता-क्रिया अन्विति, उपपद विभक्ति आदि पाठ्यपुस्तक में आए पाठों के आधार पर ही पूछे जाते हैं। इसलिए पाठ में जहां कहीं भी संधि वाले शब्द आएं, उनके विच्छेद का अभ्यास लिख कर करना चाहिए।
सामाजिक शब्दों के भी केवल विग्रह ही पूछे जाते हैं। वहां समास का नाम नहीं बताना होता, अत: केवल विग्रह का अभ्यास करना चाहिए। प्रकृति-प्रत्यय को जोड़ कर शब्द बना कर खाली स्थान की पूर्ति करनी होती है। कर्ता के मुताबिक क्रिया को अन्विति करने को कहा जाता है तथा उपपद विभक्ति का प्रयोग कर खाली स्थान को भरना होता है।
इस भाग में संधि, समास, प्रकृति-प्रत्यय आदि वाले जो प्रश्न हैं, उनको फिर से पुस्तिका पर न लिखें, बल्कि रेखांकित या रिक्त स्थान वाले शब्दों को प्रश्न संख्या के साथ लिख कर उसके सामने उनके उत्तर लिख दें। इससे उत्तर पुस्तिका जांचने वाले को सुविधा होती है, साथ ही सुंदर भी दिखाई देता है।
प्रश्नपत्र का चतुर्थ भाग खंड ‘घ’ 45 अंकों का होता है। ये पठितांश अवबोधन से संबंधित है। इनके सभी प्रश्न पाठ्यपुस्तक के आधार पर ही होते हैं। इसमें पहला प्रश्न पठित गद्यांश के आधार पर, दूसरा पठित पद्यांश के आधार पर और तीसरा पठित नाट्यांश के आधार पर होता है।
इसमें भी प्राय: एकपद में पूर्णवाक्य में तथा निर्देशानुसार उत्तर देना होता है। अत: इसका सही उत्तर देने के लिए सभी आठ पाठों का अभ्यास करना चाहिए।
चौथे प्रश्न का उत्तर उद्धृतांश के आधार पर कुछ निर्देश को देख कर दिया जाना चाहिए। पांचवें प्रश्न में सही भावार्थ को चुन कर लिखना होता है। इस प्रश्न के दूसरे भाग में भाव को मन्जूषा से भरना होता है। अत: अर्थ को समझ कर शब्दों को सही स्थान पर लगाना चाहिए।
छठे प्रश्न में श्लोक के आधार पर दिए गए अन्वय के रिक्त स्थानों की पूर्ति करनी होती है। इसमें अगर श्लोक के अर्थ को समझ कर गणितीय पद्धति द्वारा दिए गए शब्दों को सही स्थान में लिख दिया जाए तो पूरे-पूरे नम्बर मिल जाएंगे।
मेरी यही सलाह है कि अगर रोज एक-एक घंटा लिख कर अभ्यास किया जाए तो संस्कृत में बहुत अच्छे अंक मिल सकते हैं।
विशेषज्ञ परिचय
अवधेश कुमार झा
संस्कृत विशेषज्ञ
(उपप्रधानाचार्य)
रा़ सह शिक्षा व.मा.वि,
सेक्टर-8,
रोहिणी, दिल्ली