दोहे साखियां कबीर हिन्दी अर्थ
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प्रेमी ढ़ूँढ़त मैं फिरौं, प्रेमी मिले न कोइ।
प्रेमी कौं प्रेमी मिलै, सब विष अमृत होइ।2।
कबीर की साखी अर्थ सहित:- प्रस्तुत साखियों में संत कबीर दास जी ने संसार में सच्चे भक्तों की कमी के बारे में बताया है। जो व्यक्ति प्रभु की सच्ची भक्ति करता है, वह कभी भी दूसरे मनुष्य को उसकी जात, धर्म या काम के लिए नीचा नहीं समझता। वह सभी मनुष्यों को सामान भावना से देखेगा और हर मनुष्य से एक समान प्रेम करेगा।
कवि के अनुसार, जब दो सच्चे प्रभु-भक्त आपस में मिलते हैं, तो उनके बीच कोई भेद-भाव, ऊँच-नीच, क्लेश इत्यादि (विष जैसी) बुरी भावनाएं नहीं होतीं। साथ ही, जब दो सच्चे भक्त एक-दूसरे से मिलते हैं, तो नीची जात, दूसरे धर्म का व्यक्ति या अछूत व्यक्ति भी प्रेम का पात्र बन जाता है। इस तरह पाप भी पुण्य में परिवर्तित हो जाता है, लेकिन आज की दुनिया में दो सच्चे भक्तों का मिलन होना बहुत ही दुर्लभ है।
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जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।मेल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।1।।
कबीर की साखियाँ अर्थ सहित: कबीर की साखी की इन पंक्तियों में कवि कहते हैं कि हमें कभी भी सज्जन इंसान की जाति पर ध्यान नहीं देना चाहिए, बल्कि हमें तो उसके गुणों के आधार पर उसका सम्मान करना चाहिए। जैसे, तलवार की कीमत म्यान नहीं, बल्कि तलवार की धार में छिपी होतो है।
आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।कह कबीर नहिं उलटिए,वही एक की एक।।2।।
कबीर की साखियाँ अर्थ सहित: प्रस्तुत साखी में कबीरदास जी कहते हैं कि किसी के अपशब्दों का जवाब कभी भी अपशब्दों से मत दो। इससे वो अपशब्द बढ़ने के बजाय घटते-घटते ख़त्म हो जाएंगे।
माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।
माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि।मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तौ सुमिरन नाहिं।।3।।
कबीर की साखियाँ अर्थ सहित: प्रस्तुत दोहे में कबीर जी कहते हैं कि अगर आपका मन प्रभु की भक्ति में नहीं लगता है, तो फिर हाथ में माला लेकर घूमना, मुख से प्रभु का नाम लेना बेकार है। अगर प्रभु को पाना है, तो हमें एकाग्र होकर उनकी भक्ति करनी होगी।
कबीर घास न नींदिए, जो पाऊँ तलि होइ।
कबीर घास न नींदिए, जो पाऊँ तलि होइ।उड़ि पड़ै जब आँखि मैं, खरी दुहेली होइ।।4।।
कबीर की साखियाँ अर्थ सहित: प्रस्तुत दोहे में कबीर जी कहते हैं कि हमें कभी भी किसी को छोटा समझकर उसका निरादर नहीं करना चाहिए। जैसे, घास को छोटा समझ कर हर वक़्त दबाना नहीं चाहिए क्योंकि अगर इसका एक तिनका भी आंख में चला जाए, तो हमें बहुत पीड़ा होती है।
जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।
जग में बैरी कोइ नहीं, जो मन सीतल होय।या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।5।।
कबीर की साखियाँ अर्थ सहित: प्रस्तुत साखी में कबीर जी कहते हैं कि जिस मनुष्य का मन शांत होता है, दुनिया में उसका कोई शत्रु नहीं हो सकता है। यदि दुनिया का हर मनुष्य स्वार्थ, क्रोध जैसी भावनाओं का त्याग कर दे, ओ वो दयालु और महान बन सकता है।