थूके, मुझ पर त्रैलोक्य भले ही थूके,
जो कोई जो कह सके, कहे, क्यों चूके ?
छीने न मातृपद किन्तु भरत का मुझसे,
हे राम, दुहाई करूँ और क्या तुझसे ?
कहते आते थे यही अभी नरदेही,
'माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही।'
अब कहे सभी यह हाय! विरूद्ध विधाता,
'है पुत्र पुत्र ही, रहे कुमाता माता'।
परमार्थ न देख, पूर्ण स्वार्थ ही साधा,
इस कारण ही तो हाय आज यह बाधा।
युग-युग तक चलती रहे कठोर, कहानी,
'रघुकुल में भी थी एक अभागिन रानी,
निज जन्म-जन्म में सुने जीव यह मेरा
धिक्कार ! उसे था महा स्वार्थ ने घेरा।।
इस काव्यांश का वक्ता कौन है ?
क-
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कैकेयी.........
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