ठाकुर
2019-20
थी।
2019-20
पाठ6
हीरा-कुणी
लगी। उसने फाटक की जंजीर पकड़कर हिलाई और फिर विनती की-"अरे भाई. एक बार द्वार खोल दी
रवीन्द्रनाथ
पहरेदार ने फिर झल्ला कर कहा-"हुक्म नहीं है।
आइए, सीखें: पालतू पशु-पक्षियों के प्रति स्नेह भाव। - संज्ञा के भेद-व्यक्तिवाचक, जाति वाचक तथा
सूरज छिप गया। पक्षी पंख फैलाकर अपने बसरों की ओर उड़ चला किले के मध्य भागमदेव
भाव वाचक संज्ञा का परिचय।
ग्वालिन का नाम था हीरा, और उसकी गाय का नाम था कुणी। हीरा का एक महीने का बच्चा था।
मंदिर के ऊपर साँझ का तारा दिखने लगा। हीरा रोकर मन ही मन कहने लगी-"काश, मुझेख मिल जाते
गाय की भी एक महीने की बछिया थी। हीरा रायगढ़ के पर्वत पर चढ़कर महाराष्ट्र के राजा को दूध देने जाया
और मैं अपने लाल के पास पहुँच जाती। वह दूध पिए बिना बिलख रहा होगा।"
करती थी। राजा, कुणी गाय का दूध पीकर आनन्द मनाता था। बछिया रोती रहती थी। हीरा के मन में बछिया उसकी पुकार हीरा को सुनाई पड़ी। वह दूध की मटकी पटककर उठ खड़ी हुई। वह किसी रास्ते की खोज
पहाड़ के नीचे तराई में ही हीरा का घर है। कुणी गाय अपनी बछिया को पुकार रही है। वहाँ से
के लिए किसी भी दिन दया नहीं जागती थी। दूध दुहने के समय कुणी गाय रह-रह कर बछिया को पुकारती
करने लगी।
थी। बछिया दौड़कर दूध पीने के लिए आती पर हीरा उसे लौय किले की दीवार पुरानी थी। एक जगह पर किनारे से पहाड़ धंस गया था। एक पीपल का पेड् दीवार
देती। उसे खूटे से बाँधे रखती थी। इस प्रकार बछिया अपनी माँ पर झुका था। उसी जगह पर आधी रात में चाँदनी पड़ रही थी। हीरा ने चाँदनी में देखा कि चट्टानों की नाक
को नहीं पा सकती थी और दूध के लिए तरसती, बिलखती रहती घड़ियाल के बड़े-बड़े दाँतों की तरह चमक रही है। हीरा उसी रास्ते से धीमे-धीमे उतरने लगी. एक-एक
पत्थर पर पैर टिकाकर। उसके बाद एक पगडंडी से
हीरा का ध्यान उधर कभी जाता ही नहीं था। वह तो सुबह-शाम
हीरा अपने घर जा पहुंची।
दूध दुहकर, उसे बेचने के लिए राजा के किले में चली जाती थी
उस समय रात का तीसरा पहर बीत रहा था। भोर होने
रात होने से पहले ही हीरा किले से लौट आती थी। पहले, अपने
की तैयारी थी।बच्चासेकरसोगया था।हीरासोते
बच्चे को दूध पिलाती, थपकियाँ देकर सुला देती फिर बछिया को
हुए बच्चे को उठाकर, छाती से लगाकर दूध पिलाने
पकड़कर कुणी के पास ले जाती। बछिया लपककर अपनी माँ
लगी। उधर रस्सी तोड़कर कुणी की भूखी बछिया भी
की गोद में जा पहुँचती, दूध जरा-सा ही पी पाती थी। कुणी
दूध पीने लगी थी। हीरा ने उस दिन उसे बाँधा नहीं।
अपनी बछिया के तन को चाटकर सुला दिया करती थी। बछिया
भोर हो गई। दिन चढ़ने लगा। रायगढ़ के राजा ने नींद
से जागकर दूध माँगा। हीरा दूध नहीं लाई थी।
भूखी रह जाती थी और राजा दूध पीकर मौज मनाता था। इसी तरह दिन बीतते रहे।
हीरा के घर से दूध लाने के लिए सिपाही को दौड़ाया गया । हीरा कहने लगी-"दूध नहीं है, सूख
एक दिन हीरा दूध बेचने के लिए किले में गई । वहाँ दूध का मूल्य चुकाने में राजा के कोषाध्यक्ष ने देर
लगा दी। शाम का घंटा बज गया। किले का फाटक बंद कर दिया गया।हीरा बोली-"द्वार खोलो"।
वह ठहरा राजा का सिपाही। वह भला क्यों मानने लगा था। होरा को पकड़कर वह किले में ले
पहरेदार ने कहा-"आज्ञा नहीं है" हीरा का मन बच्चे के लिए छटपटाने लगा। वह रोकर कहने लगी
आया। राजा ने हीरा से सारी कहानी सुनी। उसका दिल पिघला। राजा ने हीरा को एक गाँव जागीर में दे दिया
'मेरा मुन्ना भूखा है, तुम्हारे पैर पड़ती हूँ, फाटक खोल दो।"
और जिस मार्ग से हीरा अपने जीवन को संकट में डालकर, अपने बच्चे के समीप जा पहुंची थी, राजा ने उस
राजा के पत्थर-दिल पहरेदार ने द्वार नहीं खोला। बालक को दूध पिलाने के लिए माँ की छाती फटने
कठिन रास्ते का नाम रखा-"हीरा-कुणी।"
शिक्षण संकेत-
• वात्सल्य भाव प्रधान कोई कहानी या कविता से पाठ का प्रारंभ करें। पालतू पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम व
स्नेह भावना का विकास करें। • हाव-भाव के साथ कहानी बच्चों को सुनाएँ तथा उनसे सुनें।
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गया है।"
2019-20
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i cant read this
Explanation:
what language is this?
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sahi hai
Explanation:
all correct. mark me brainlizt
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