Hindi, asked by kaurshona, 1 month ago

दुख से कब डरता है किसान?
है शिशिर कँपा देता शरीर
चुभता-सा है शीतल समीर,
तो भी न कभी होता अधीर,
वह वसनहीन भी कर देता है शीत-व्यथा का ध्वस्त मान।
है जीत चुका दुख को किसान।
आता है भीषण ग्रीष्म काल,
है भूमि उगलती ज्वाल-माल,
है उष्ण वायु बहती कराल,
पर कृषक घूमता है निर्भय, हो कड़ी धूप से भी न प्लान।​

Answers

Answered by RitaNarine
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दुख से कब डरता है किसान?

  • यह कविता किसान के दुख और उसके साथ उनके सामने आने वाली प्रतिकूलताओं के बारे में है। किसान अपनी मेहनत से पैदा किए गए फलों के लिए तन और मन से काम करते हैं। जब उनका मेहनत का फल नहीं मिलता है, तो उन्हें दुख होता है। यह दुख किसान के लिए बहुत हानिकारक हो सकता है।
  • इस कविता में उल्लेख किए गए मौसम के तबदीलों के बावजूद, किसान अपने काम में निर्भय रहता है। उनका संघर्ष उन्हें जीत दिलाता है। यह कविता किसान के मन की दृष्टि को बताती है, जो उन्हें दुख से नहीं डरने देती है। वे अपने काम में लगे रहते हैं और सफलता की ओर बढ़ते रहते हैं।
  • किसान का जीवन बहुत मुश्किल होता है। वे अपने मेहनत से अपने परिवार को नौकरी देते हैं और देश के लिए अपनी ज़मीन पर फसल उगाते हैं। लेकिन बदलती मौसम और अन्य प्रकृति की विपरीत परिस्थितियों के कारण, उन्हें धनवान नहीं बनाया जा सकता है।

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