देखा सब संसार में, मतलब का व्यवहार ।
जब लगि पैसा गाँठ में, तब लगि ताको यार ।।
तब लगि ताको यार, यार सँग ही सँग डोलै
पैसा रहा न पास, यार मुख से नहि, बोलै ।।
कह गिरिधर कविराय, जगत का ये ही लेखा।
करत बेगरजी प्रीति, मित्र कोई बिरला देखा ।। भावार्थ
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1) तब लगि ताको यार 2 ) यार सऺॅग ही सॅग डोले.
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दी गई पंक्तियों का भावार्थ निम्न प्रकार से स्पष्ट किया गया है।
संदर्भ
प्रस्तुत पंक्तियां "साई सब संसार में" काव्य से " कुंडलियां गिरीधर राय " पुस्तक के पृष्ठ 14 से ली गई है रचनाकार है गिरीधर राय।
प्रसंग
इन पंक्तियो में कवि कहते है कि यह संसार स्वार्थी है , बिना पैसे मनुष्य का कोई मोल नहीं।
व्याख्या
- कवि गिरीधर राय कहते है कि यह संसार स्वार्थ से भरा हुआ है, जब पास में पैसे होते है तब सभी आकर मित्र बनते है।
- जब तक पास में पैसा है तब तक साथ देते है, पैसे खत्म होने पर साथ छोड़कर चले जाते है।
- कवि कहते है कि यही जगत की रीत है, बिना मतलब के कोई पास नहीं फटकता, रिश्ते भी मतलब के हो गए है।
- बिना स्वार्थ के कोई दोस्ती करे ,ऐसा तो कोई विरला ही होगा ।
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