१५.३ दुख
दुख है मेरा; सफेद चादर की तरह निर्मल ?
उसे बिछाकर सो रहता हूँ।
“दुख है मेरा; सूरज की तरह प्रखर
उसकी रोशनी में; सारे चेहरे देख लेता हूँ।
दुख है मेरा; हवा की तरह गतिवान
उसकी बातों में; मैं सबको लपेट लेता हूँ।
दुख है मेरा; अग्नि की तरह समर्थ
उसकी लपटों के साथ; मैं अनन्त में हो लेता हूँ ।
('खूटियों पर टॅगे लोग' से)
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wow it's so nice poem like that
but what was the question
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