दिल्ली सल्तनत के प्रशासन के बारे में बताइए।
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दिल्ली सल्तनत के प्रशासन का वर्णन इस प्रकार है...
सुल्तान — सुल्तान की उपाधि का आरंभ तुर्क शासकों द्वारा किया गया था। पूरे राज्य की शक्ति सुल्तान के हाथ में ही होती थी। वो प्रधान न्यायाधीश होता था तथा राजनीति और अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों का अधिपति होता था।
अमीर — सुल्तान की शक्ति पर अमीर वर्ग का प्रभाव रहता था। अमीरों के दो वर्ग होते थे। एक वर्ग तुर्कों तथा दूसरा वर्ग गैर तुर्कों को होता था।
केंद्रीय शासन — मंत्री परिषद की तरह ही मजलिस-ए-खलअत इकाई होती थी। जिसमें वजीर, आरिजे मुमालिक, दीवान-ए-इंशा, दीवान-ए-रिसालत चार मुख्य स्तंभ होते थे।
वजीर — वजीर के कार्यालय को दीवान-ए-विजारत कहते थे। इसे वित्त-विभाग का दर्जा भी प्राप्त था। मुस्तौफी (महालेखा परीक्षक), कजीन (खजांची), मजम आदार (हिसाब संग्रह कर्ता) इस विभाग के कर्मचारी होते थे।
दीवान-ए-मुस्तखराज — जलालुद्दीन खिलजी ने दीवान-ए-वक्फ एवं अलाउद्दीन खिलजी ने दीवान-ए-मुस्तखराज विभागों की स्थापना की थी। यह विभाग वित्त विभाग के अंतर्गत ही आते थे। मोहम्मद बिन तुगलक ने भूमि को कृषि योग्य बनाने हेतु दीवान-ए-अमीर कोही की स्थापना।
दीवान ए इंशा — इस विभाग के अंतर्गत शाही पत्र व्यवहार का कार्य होता था।
दीवाने-ए-रिआसत — इस विभाग का कार्य विदेशी अर्थात राज्य से बाहर के मामलों को देखना था। ये एक विदेश मंत्री की तरह था।
सेद्र-उस-सुदूर — यह धर्म विभाग का प्रमुख होता था ।का
काजी-उल-कुजात —यह न्याय विभाग का प्रमुख होता था।
वरीद-ए-मुमालिक — यह सूचना विभाग का प्रमुख होता था।