दिमागी गुलामी मैं लेखक ने कोन से विचार उठाए हैं
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‘दिमागी गुलाम’ नामक निबंध में लेखक के अनुसार मनुष्य अनेक तरह के संकीर्ण विचारों की बेड़ियों में जकड़ा हुआ है, जिसमें राष्ट्रवाद, प्रांतवाद, क्षेत्रवाद, जातिवाद आदि प्रमुख हैं। इन बातों यह एक तरह की मानसिक दासता है और यह संकीर्ण विचार मनुष्य में आपसी झगड़े का कारण बन रहे हैं और देश की विकास में बाधक हैं। इसलिए इन सब के विचारों से मुक्ति ही मानसिक दासता की बेड़ियों तोड़ने के समान है।
‘दिमागी गुलामी‘ निबंध ‘राहुल सांकृत्यायन’ द्वारा लिखा गया एक वैचारिक निबंध है, जिसमें उन्होंने मानव की सोच पर प्रकाश डाला है। निबंध के माध्यम से लेखक ने यह स्पष्ट किया है की गति का दूसरा नाम ही जीवन है। विचारों की स्थिरता और जड़ता मनुष्य को मृत्यु और पतनी ओर ले जाती है। यह दिमागी गुलामी का प्रतीक है। विचारों का निरंतर प्रवाह बने रहना चाहिए कहते हैं क्योंकि दिमागी गुलामी यानी मानसिक दासता मानव के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं।
दिमागी गुलामी से तात्पर्य अनुपयोगी विचार, सोच और धारणाओं से है। ये धारणायें क्षेत्रवाद, प्रांतवाद, धर्मवाद, जातीवाद, राष्ट्रवाद आदि के नाम पर मानव के मन मस्तिष्क को जकड़ लेती हैं। लेखक के अनुसार जैसे-जैसे सभ्यता पुरानी होती जा रही है मानव का मन उतना ही अधिक जटिल होता जा रहा है।