देन ही देवत की व स्तववक ववशेषत है। असह य व्यजतत क शोषण करनेव ि ककसी को के वि दुः ि देसकत है। देनेक क म वही कर सकत हैिो स्वयांभी पररपूणणहोत है। देवत स्वयांको भी देत हैऔर दसू रों को भी। जिसने स्वयांको न ददय , वह दसू रों को तय देग ? हम िोग अतसर कहतेहैंकांिूस ककसी को क छ नहीांदेत । यह ब त ठीक नहीांहैकक कृपण दसू रेको नहीांदेत , पर कृपण स्वयांको भी कह ाँदेत है? वह दीन-हीन की तरह रहत हैऔर उसी तरह मर भी ि त है। देनेसेककसी व्यजतत की सांपन्नत स र्णक होती है। धन की तीन गनतय ाँहोती हैं— उपभोग, द न और न श जिसनेधन क उपभोग नहीांककय , द न नहीांककय , उसके धन केलिए एक ही गनत बचती है— न श घूस और अनैनतक ढांग सेहड़पकर दसू रों केधन सेघर भरनेव िों क यही अांत होत है। सत्त , व्य प र, र िनीनत मेंइस प्रक र केसफे दपोश ि टेरेछ पेह ए हैं। िो हम अजिणत करतेहैं, वह हम र िीवन है। धन हम रेिीवन क कें द्र नहीांहै। धन एक सांस धन है, जिससेहम अपनी जिम्मेद ररयों को ननभ तेहै। धन एक सह यक स मग्री है, जिससेहम िीवन के उद्देश्यों की पूनतणकरतेहैं। धन क क म हैकक वह हमेंस ि दे। यह स ि हमेंतीन किय ओांसेलमित है- धन केअिणन से, धन केउपभोग सेऔर धन केद न से। इन तीन किय ओांसेधन हम री सेव करत है। ब की किय ओांसेहम धन की सेव करतेहैं। कांिूस धन को बच िेतेहैं। अपव्ययी उसेउड़ देतेहैं, ि ि उसेउध र देतेहैं। चोर उसेच र िेतेहैं, धनी उसेबढ़ देतेहैं, ि आरी उसेगाँव देतेहैंऔर मरनेव िेउसेपीछेछोड़ ि तेहैं।
प्रश्न(question)
I. प्रस्त त गद्य ांश केआध र पर बत इए कक कांिूस व्यजतत क िीवन ककस प्रक र क होत है?
II. गद्य ांश केअन स र धन तय है? स्पष्ट कीजिए। III. हमेंस ि ककन किय ओांसेलमित है?
IV. ननम्नलिखित शब्दों केववपरीत र्णक शब्द लिखिए (i) अपव्ययी (ii) कृपण
V. प्रस्त त गद्य ांश क सव णधधक उपय तत शीषणक लिखिए।
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