दान को जीवन का प्रकृत धर्म क्यों कहा गया है
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दान जगत का प्रकृत धर्म है जो नर आत्म-दान से अपना जीवन-घट भरता है, वही मृत्यु के मुख मे भी पड़कर न कभी मरता है। जहाँ कहीं है ज्योति जगत में, जहाँ कहीं उजियाला, वहाँ खड़ा है कोई अंतिम मोल चुकानेवाला। व्रत का अंतिम मोल राम ने दिया, त्याग सीता को, जीवन की संगिनी, प्राण की मणि को, सुपुनीता को।
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