Science, asked by ray93328, 6 months ago

दुर्गम बर्फानी घाटी में, शत-सहस्त्र फुट ऊँचाई पर
अलख नाभि से उठने वाले, निज के ही उम्मादक परिमल
के पीछे धावित हो होकर, तरल तरूण कस्तूरी मृग को
अपने पर चढ़ते देखा है, बादल को घिरते देखा है। ​

Answers

Answered by akshatrauthan
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Answer:

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Explanation:

Answered by abdulraziq1534
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अवधारणा परिचय:-

कविता भाषा का लिखित और बोली जाने वाला रूप है जिसमें वाक् प्रवाह होता है और व्याकरणिक संरचना दोनों स्वाभाविक होती है।

व्याख्या:-

हमें एक प्रश्न प्रदान किया गया है

हमें इस प्रश्न का समाधान खोजने की जरूरत हैये पंक्तियां कवि ‘नागार्जुन’ द्वारा रचित कविता “बादल को घिरते देखा है” से ली गयीं है, इन पंक्तियों में कवि ने बादल के सौंदर्य का वर्णन किया है। कवि कहता है कि चारों तरफ बर्फीले पहाड़ों से घिरी हुई दुर्गम घाटी जो सैकड़ों फुट की ऊंचाई पर स्थित हैं। ऐसी बर्फीली घाटी में कस्तूरी मृग अपने जीवन में कस्तूरी की गंध के पीछे भागता रहता है। लेकिन वह सच्चाई से परिचित नहीं हो पाता, उसे इस सच्चाई का ज्ञान नहीं हो पाता कि यह गंध तो उसकी नाभि में व्याप्त कस्तूरी से ही आ रही है। वह इस गंध को ढूंढ-ढूंढ कर पूरा जिंदगी भटकता रहता है और अंत में थक जाता है, तब वह स्वयं को असहाय पाता है और खुद पर ही चिड़चिड़ाने लगता है।

अंतिम उत्तर:-

सही जवाब है ये पंक्तियां कवि ‘नागार्जुन’ द्वारा रचित कविता “बादल को घिरते देखा है” से ली गयीं है, इन पंक्तियों में कवि ने बादल के सौंदर्य का वर्णन किया है।

#SPJ3

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