द्रुम-डरिया,
अब कै राखि लेहु भगवान।
हौं
बैठ्यौ द्रुम-
अनाथ
पारधि साधे बाना
ताकै डर
मैं भाज्यौ चाहत,
ऊपर ढुक्यौ
ढुक्यौ सचान।
दुख भयौ आनि यह
यह, कौन उबारै प्रान?
ही अहि डस्यौ पारधी, कर छूट्यौ संधान।
सूरदास सर
लग्यौ
जय-जय कृपानिधान।
भाँति दुख
दुहूँ भाँति
सुमिरत ही
सचानहिं,
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