दूसरों की बनाई डगर छोड़ दें।
तू नई राह पर कारवाँ मोड दे,
फोड़ दे तू शिलाएँ चुनौती भरीनार)
क्रूर अवरोध को निष्करुण तोड़ दे।
व्यर्थ जाने न पाएं महापर्व सहगल)
जो स्वयं आ गया आज तेरी डगर ।
अब नए मार्ग पर रथ हाँकने
हर अंधेरे से दीपक लगें झांकने
बंद, अज्ञात थी आजतक जो निशा
उस दिशा को नए नाम सौटने,
मोड़ लो सूर्य का रथ, विपथ पथ बने-
बढ़ चलो विघ्न व्यवधान सब लॉप कर।
*कवि किस डगर को छोड़ने की बात कर रहा है?
* मार्ग में अवरोध आने पर कवि क्या करने की सीख दे रहे है
*आज तक अज्ञात दिशा में अब क्या किया जाता है?
*इन पंक्तियों में कवि क्या संदेश दे रहे हैं?
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- दूसरो की बनाई हुई
- निष्करुण तोड़ने को
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