देश को सँवारने में हम एक अनुच्छेद लिखें!
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आज के समय में हम सबको अपने देश की भलाई करने के लिए आगे आना ही पडेगा - और कोई विकल्प नहीं है - आज के समय में हम सब अपने देश की मदद कर सकते हैं और तबाही से बचा सकते हैं. मुसीबतें इंसान की परीक्षा लेती है और इंसान के अंदर छुपे महामानव को जगाती है. दुनिया में जितने भी नवाचार हुए हैं वे किसी न किसी चुनौती के परिणामस्वरूप सामने आते हैं. जितनी बड़ी चुनौतियां आती है उतने की शानदार नवाचार निकल कर आते हैं. जिस जिस व्यक्ति ने सकारात्मकता से चुनौतियां झेली हैं उन्होंने नवाचार कर के सफलता हासिल की है. ये सर्व-विदित है की आज के इस समय में छोटे उद्योगों और स्वरोजगार करने वाले लोगों को बहुत बड़ी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. बड़ी बड़ी कम्पनियाँ इ-कॉमर्स के जरिये अपने काम कर रही है. लेकिन छोटे उद्योगों को कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है. बड़े उद्योगों को उद्योगों के संगठनों का भी सहारा मिल जाता है. उनकी आवाज को सरकार तक पहुंचाया जाता है और उनकी परेशानियों को दूर करने के लिए सरकार को भी राहत के उपाय करने पड़ते हैं. लेकिन सूक्ष्म उद्यमियों की आवाज उठाने वाला कौन है? हर दूसरे दिन लोग और ज्यादा परेशान हो रहे हैं. कहने को पढ़ाई से लोगों की चेतना का जागरण होना चाहिए - लेकिन ऐसा नहीं है - भारत में तो जो भी व्यक्ति पढ़ाई कर लेते हैं वे ब्रांडेड सामान खरीदने लग जाते हैं और भूल जाते हैं की उनके खरीदने से ही कई लोगों के घर चलते हैं (कई लोग तो सिर्फ पढ़ाई करने के बाद बिना ब्रांड के स्थानीय उत्पाद खरीदने में भी हीन महसूस करने लग जाते हैं - यानी उनकी चेतना और समझ पर पर्दा पड़ जाता है और वे आँख मीच कर विदेशी ब्रांड के उत्पाद खरीदते हैं और कई बार तो अपने ही अनपढ़ चाचा - ताऊ को सम्मान देना तक छोड़ देते हैं - है न कितने शर्म की बात). जहाँ - जहाँ पढाई फ़ैल रही है, जहाँ - जहाँ पर समृद्धि बढ़ रही है वहां वहां पर कुटीर उद्योग तबाह हो रहे हैं. अफोसस ये है की पढ़ाई में लोगों के मन में अपने देशवासियों के प्रति संवेदना और सहयोग करने की भावना को पैदा करने और चेतना को जगाने के लिए कोई प्रयास भी नहीं किया जाता है. सरकारों को भी बड़ी कंपनियों से मदद मिलती रहती है अतः वे बड़ी कंपनियों के हितों को तो ध्यान में रखती हैं लेकिन छोटे लोगों को नजरअंदाज कर देती है. अगर सरकारें चाहें तो सूक्ष्म उद्यमियों को सहारा दे कर देश की सारी आर्थिक समस्याओं को मिटा सकते हैं लेकिन अफोसस ये है की देश के ज्यादातर अर्थशाष्त्री और आर्थिक सलाहकार विदेशी ज्ञान से काम चलाते हैं अतः वे विकास के उसी मॉडल पर चलते हैं जो पश्चिमी देशों में लागू हुआ है. भारत के सूक्ष्म उद्यमियों या ग्रामीण उद्यमियों और किसानों को केंद्र में रख कर दुनिया की पहली विकास नीति बनाने का सुझाव कौन दे? आज कोरोना की मुसीबतों ने सूक्ष्म उद्यमियों के लिए विकराल मुश्किलें खड़ी कर दी है. लेकिन इस समय में सरकार से अपेक्षा रखने की बजाय नवाचार करने से ही तरक्की सम्भव है. अनेक लोग इस समय नवाचार कर के अपने आपको बचाने का प्रयास कर रहे है.
आज जरूरत इस बात की है की नवाचार करने वाले छोटे उद्यमियों का हम हौसला बढ़ाएं और उनकी मदद करें. इस मुसीबत के समय में इनकी मदद करने से ही देश की आधी आबादी इस मुसीबत के समय अपने आप को बचा पाएगी. ये काम आज हम लोगों को ही करना पडेगा - और कोई आगे नहीं आएगा. हम में से हर व्यक्ति लघु उद्यमियों के एक एक नवाचार के बारे में १० - १० लोगों को बताना शुरू कर देवे तो शायद इन लघु उद्यमियों को कुछ मदद मिल पाएगी. आज के समय में सोशल मीडिआ के इस्तेमाल से अपने- अपने लक्ष्य हासिल करने के लिए हर कंपनी और संगठन अपने अपने प्रयास कर रही हैं. हमारे दुश्मन देश (पाकिस्तान) ने भारत में सांप्रदायिक आधार पर द्वेष फैलाने के लिए बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया है ट्विटर, व्हाट्सप्प और अन्य सोशल मीडिया पर वे फर्जी व्यक्तियों के नाम से लोगों की भावना भड़काने के लिए असफल प्रयास कर रहे हैं. एक एक दिन में लाखों मेसेज तैयार किये जाते हैं. ऐसे समय में देश के लघु उद्यमियों की मदद करने के लिए आगे आना हर व्यक्ति के लिए अपने आप में एक चुनौती है. आज के समय में लोगों को ये समझाना जरुरी है की सोशल मीडिया पर जिस प्रकार से लोग मेसेज डाल रहे हैं उनको सही मान कर निर्णय लेना गलती हो सकता है क्योंकि दुनिया भर के फर्जी एकाउंट बना कर हमारे दुश्मन हमारे अंदर गलतफहमियां पैदा करने के लिए प्रयास कर रहे हैं. लोगों को सोशल मीडिआ से वापिस जमीनी हकीकत से जोड़ने के लिए क्या करें? क्या करें की लोग फिर से अपने शहर के छोटे छोटे व्यापारियों को ज्यादा तबज्जु देना शुरू करें बजाय की बड़ी- बड़ी कंपनियों को तबज्जु देने के? आज क्या करें की लोगों को सोशल मीडिआ के मार्केटिंग के माया जाल से निकाल कर अपने पडोसी छोटे व्यापारियों की मदद करने के लिए सोचने को प्रेरित करें? एक उदाहरण से बात स्पस्ट करता हूँ. आज अगर आप एक टीवी खरीदने की सोच रहे हैं तो सोशल मीडिया पर आप के पास अनेक ऐसे मेसेज आने लग जाएंगे की आप फलां - फलां टीवी खरीदें. सोशल मीडिया के द्वारा बड़ी बड़ी कम्पनियाँ ये पता लगा लेती हैं की कौन कौन लोग टीवी खरीदना चाहते हैं और उनको किस प्रकार के मेसेज भेजे जाएँ ताकि वे उनका टीवी खरीदें. आपको पता भी नहीं चलेगा और आप का ब्रेन वाश कर दिया जाएगा. आपको फेसबुक पर कोई व्यक्ति अपने अनुभव बताता दिखेगा की फलां- फलां टीवी ही लेना. आपको किसी सोशल मीडिआ से ये सन्देश मिलेगा की फलां -फलां ऑनलाइन स्टोर से टीवी खरीदने से आपको ज्यादा फायदा होगा. और आप को ऐसे ऐसे प्रलोभन वाले कूपन और टोकन मिलेंगे की आपको लगेगा की भगवान् भी आपकी टीवी खरीदने में मदद कर रहा है. ये भगवान् नहीं ये सोशल मीडिया का मार्केटिंग जाल है.