Hindi, asked by bcbasti28gmailcom, 6 months ago

देश के स्वाधीनता संग्राम भाग लेने वाली 5 से अधिक महिलाओं के चित्र से एक को कोलाज बनाएं फोटो दिखाइए​

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Answered by alihusain40
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1)कनकलता बरुआ– कनकलता ने हमेशा देश की सेवा करने और स्वतंत्रता संग्राम में मदद करने के सपने को देखा. 17 साल की उम्र से वह स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होना चाहती थी लेकिन चूंकि वह नाबालिग थी इसलिये वह आजाद हिंद फौज में शामिल नहीं हो सकी. कनकलता का दृढ़ संकल्प ही था कि उन्होंने हार नही मानी और मृत्यु बहिनी में शामिल हो गई. असम में 1924 में पैदा हुई, कनकलता असम के सबसे महान योद्धाओं में से एक थी. वह असम से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा शुरू की गई स्वतंत्रता पहल के लिए “करो या मर” अभियान में शामिल हो गईं. यही नही, भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान असम में भारतीय झंडा फेहराने के लिये आगे बढ़ते हुये उनकी मृत्यु हो गई.

2)मातंगिनी हाज़रा– भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला सदस्यों में से एक, मातंगिनी हाज़रा ने देश की स्वतंत्रता के लिए बहादुरी से लड़ाई लड़ाई, लेकिन आज के समय में उनका नाम अनसुना है. इतिहास की किताबों में जिसे हम स्कूलों में पढ़ते हैं उसमें हम इस साहसी महिला का कोई जिक्र नहीं पाते है. वह एक कठोर गांधीवादी और असहयोग आंदोलन की समर्थक थी. 73 वर्ष की उम्र में, वह भारत छोड़ों आदोंलन की में सक्रिय भागीदार थी और उन्होंने 6000 समर्थकों के जुलूस की अगुवाई की जिसमें अधिकतर महिलाएं थी. उसी दौरान तमिलुक पुलिस स्टेशन के अधिहरण के वक़्त उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई जबकि वह पुलिस से अनुरोध करती रही कि भीड़ पर गोली न चलाई जायें.

3)कस्तूरबा गांधी– कस्तूरबा मोहनदास करमचंद गांधी की लोकप्रियता केवल राष्ट्र के पिता- महात्मा गांधी की पत्नी होने की वजह से थी. लेकिन हम में से कितने लोग जानते हैं कि वह नमक सत्याग्रह की प्रमुख सदस्यों में से एक थीं? पोरबंदर में पैदा हुई कस्तूरबा ने 13 साल की उम्र में गांधी से विवाह किया, अपने पति के साथ काम किया और महिलाओं के नागरिक अधिकारों के लिए लड़ा. गांधी की गिरफ्तारी के दौरान उनकी ताकत और शक्ति को देखा गया. जब उनकी मृत्यु करीब आ गई तो उनके करीबियों ने उनका मनोबल बढ़ाने के लिये कहा कि “आप जल्द ही बेहतर हो जाएंगी,” कस्तूरबा ने जवाब दिया, “नहीं, मेरा समय आ गया है”

4)बेगम हजरत अली– आजादी के पहले युद्ध में उनकी भूमिका को अक्सर वर्तमान पीढ़ी द्वारा नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है. आखिरी ताजदर-ए-अवध वाजिद अली शाह की पत्नी, बेगम हजरत अली एक शक्तिशाली महिला थीं. उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई के साथ अंग्रेजों के साथ लड़ा, हालांकि उनका नाम इतिहास के पृष्ठों से मिटा दिया गया. जब अंग्रेजों ने अवध पर कब्ज़ा कर लिया और उनके पति को निर्वासन में डाल दिया. उन्होंने अंग्रेजों से अवध को पुनः प्राप्त करने के लिए बहादुरी से लड़ा और अपने बेटे को सिंहासन पर बैठा दिया. अवध के लोगों ने उन्हें पूरी तरह से समर्थन दिया और उन्होंने लोगों को प्रेरित किया और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने का आग्रह किया.

5)भोगेश्वरी फुकनानी– एक और शहीद का उदाहरण जिसकी शहादत नज़र अंदाज़ कर दी गई जिनका जन्म नौगांव में हुआ था. भारत छोड़ो आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम में लड़ने के लिए भारत के विभिन्न हिस्सों से कई महिलाओं को प्रेरित किया और उनमें से एक बड़ा नाम भोगेश्वरी फुकनानी का था. जब क्रांतिकारियों ने बेरहमपुर में अपने कार्यालयों का नियंत्रण वापस ले लिया था, तब उस माहौल में पुलिस ने छापा मार कर आतंक फैला दिया था. उसी समय क्रांतिकारियों की भीड़ ने मार्च करते हुये “वंदे मातरम्” के नारे लगाये. उस भीड़ का नेतृत्व भोगेश्वरी ने किया था. उन्होंने उस वक़्त मौजूद कप्तान को मारा जो क्रांतिकारियों पर हमला करने आए थे. बाद में कप्तान ने उन्हें गोली मार दी और वह जख़्मी हालात में ही चल बसी.

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Answered by ashiyadav35
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