देश में धर्म की धूम कैसे मची हुई है कक्षा 9वी के पाठ धर्म की आड़ से बताएं
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इस पाठ में यह बात बिलवकुल स्पष्ट कर दी र्गइ है कि देश में जितने भी दंगे- फसाद होते हैं, वे सब धर्म के ही नाम पर होते हैं। धार्मिक उन्माद पैदा कर ही दंगा फैलाया जाता है। लेखक का कहना है कि धर्म और ईमान के नाम पर वैसे लोग ही प्राण तक गँवा देने पर उतारू रहते हैं, जिन्हें धर्म आरै इर्मान के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है। जो धर्म ओर ईमान का शाब्दिक और वास्तविक अर्थ नहीं जानते, वे धर्म और ईमान के लिए जुझारू हो जाते हैं।
लेखक ने भारत ही नहीं, विदेशों में भी इस प्रकार की धूर्तता का पर्दाफाश किया है। लेखक को इस बात का अफसोस है कि देश में आज़ादी के दिनों में भी धर्म के ठेकेदारों को स्वाधीनता आंदोलन में प्रवेश दिया गया, जो अनुचित था। इसका दूरगामी दुष्परिणाम होना था। आखिरकार दुष्परिणाम सामने आया भी।
महात्मा गांधी धर्म की सही व्याख्या करने वाले थे । महात्मा गांधी का धर्म किसी और धर्म का प्रतिद्वंद्वी नहीं था। उनके धर्म से संबंध्ति विचारों से किसी का भी अहित नहीं होता है, क्योंकि उनका धर्म सीधा मानवतावाद से जुड़ा हुआ है।
महात्मा गांधी धर्म को सर्वत्र स्थान देते हैं। वे एक पग भी धर्म के बिना चलने के लिए तैयार नहीं थे। लेकिन यह भलीभाँति समझ लेना चाहिए कि धर्म से महात्मा गांधी का अर्थ धर्म के अंदर ऊँचे और उदात्त तत्वों से है। महात्मा गांधी जी के अनुसार भलमनसाहत की कसौटी केवल मनुष्य का आचरण है।
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देश में धर्म की धूम है-का आशय यह है कि देश में धर्म का प्रचार-प्रसार अत्यंत जोर-शोर से किया जा रहा है। इसके लिए गोष्ठियाँ, चर्चाएँ, सम्मेलन, भाषण आदि हो रहे हैं। लोगों को अपने धर्म से जोड़ने के लिए धर्माचार्य विशेषताएँ गिना रहे हैं। वे लोगों में धर्मांधता और कट्टरता भर रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि साधारण व्यक्ति आज भी धर्म के सच्चे स्वरूप को नहीं जान-समझ सका है। लोग अपने धर्म को दूसरे से श्रेष्ठ ‘समझने की भूल’ मन में बसाए हैं। ये लोग अपने धर्म के विरुद्ध कोई बात सुनते ही बिना सोच-विचार किए मरने-कटने को तैयार हो जाते हैं। ये लोग दूसरे धर्म की अच्छाइयों को भी सुनने को तैयार नहीं होते हैं और स्वयं को सबसे बड़ा धार्मिक समझते हैं।