दादा मा
मज़ोरी ही है अपनी, पर सच तो यह है कि ज़रा-सी कठिनाई पडते.
बीसों गरमी, बरसात और वसंत देखने के बाद भी, मेरा मन सदा नहीं
तो प्रायः अनमना-सा हो जाता है। मेरे शुभचिंतक मित्र मुँह पर मझे
प्रसन्न करने के लिए आनेवाली छुट्टियों की सूचना देते हैं और पीठ पीछे मुझे
कमजोर और ज़रा-सी प्रतिकूलता से घबरानेवाला कहकर मेरा मज़ाक उड़ाते हैं। मैं
सोचता हूँ, 'अच्छा, अब कभी उन बातों को न सोचूँगा। ठीक है, जाने दो, सोचने
से होता ही क्या है'। पर, बरबस मेरी आँखों के सामने शरद की शीत किरणों के
समान स्वच्छ, शीतल किसी की धुंधली छाया नाच उठती है।
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Its Hindi but you gave on English so don't know the answer....
If you will give in Hindi subject then it can be helpful..
just an advice.........
Explanation:
इसकी हिंदी लेकिन आपने अंग्रेजी में दी है इसलिए इसका जवाब नहीं पता ...।
हिंदी विषय में देंगे तो मददगार हो सकते हैं ।।
बस एक सलाह ………
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