द्वि नामकरण पद्धति से आप क्या समझते हैं।
Class - 11th Biology, Chapter - 1 (जीव जगत )
Answers
Answer:
द्विनाम पद्धति (Binomial nomenclature) जीवों (जंतु एवं वनस्पति) के नामकरण की पद्धति है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक लिनिअस ने इसका प्रतिपादन किया। इसके अनुसार दिए गए नाम के दो अंग होते हैं, जो क्रमशः जीव के वंश (जीनस) और जाति (स्पीशीज) के द्योतक हैं। जैसे 'एलिअम सेपा' (प्याज)। यहाँ “एलिअम” वंश को और “सेपा” जाति को सूचित करता है। .
Explanation:
कार्ल लीनियस ने सबसे पहले इस दो नामों की नामकरण प्रणाली को उपयोग करने के लिए चुना था। जीव विज्ञान में, द्विपद नामकरण प्रजातियों के नामकरण की एक औपचारिक प्रणाली है। कार्ल लीनियस नामक एक स्वीडिश जीव वैज्ञानिक ने सबसे पहले इस दो नामों की नामकरण प्रणाली को उपयोग करने के लिए चुना था। उन्होंने इसके लिए पहला नाम वंश (जीनस) का और दूसरा प्रजाति विशेष का विशिष्ट नाम को चुना था। उदाहरण के लिए, मानव का वंश होमो है जबकि उसका विशिष्ट नाम सेपियंस है, तो इस प्रकार मानव का द्विपद या वैज्ञानिक नाम होमो साप्येन्स् (Homo sapiens) है। रोमन लिपि मे लिखते समय दोनो नामों मे से वंश के नाम का पहला अक्षर बड़ा (कैपिटल) होता है जबकि विशिष्ठ नाम का पहला अक्षर छोटा (स्माल) ही होता है। .यह लेख आधुनिक विज्ञानों, प्रद्योगिकी एवं अन्य विषयों के विचारों एवं कांसेप्ट को व्यक्त करने के लिये प्रयुक्त तकनीकी शब्दों को समुचित नये नाम देने से संबन्धित है। हिंदू धर्म में नामकरण संस्कार के लिये संबन्धित लेख देखें। ---- किसी वस्तु, गुण, प्रक्रिया, परिघटना आदि को समझने-समझाने के लिये समुचित नाम देना आवश्यक है। इसे ही नामकरण (Nomenclature) कहते हैं। इसमें तकनीकी शब्दों की सूची, नामकरण से संबन्धित सिद्धान्त, प्रक्रियाएं आदि शामिल हैं। .
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प्याज
हरीप्याज प्याज प्याज़ एक वनस्पति है जिसका कन्द सब्ज़ी के रूप में प्रयोग किया जाता है। भारत में महाराष्ट्र में प्याज़ की खेती सबसे ज्यादा होती है। यहाँ साल मे दो बार प्याज़ की फ़सल होती है - एक नवम्बर में और दूसरी मई के महीने के क़रीब होती है। प्याज़ भारत से कई देशों में निर्यात होता है, जैसे कि नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, इत्यादि। प्याज़ की फ़सल कर्नाटक, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल मध्य प्रदेश जैसी जगहों पर अलग-अलग समय पर तैयार होती है। विश्व में प्याज 1,789 हजार हेक्टर क्षेत्रफल में उगाई जाती हैं, जिससे 25,387 हजार मी.
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वानस्पतिक नाम
वानस्पतिक नाम (botanical names) वानस्पतिक नामकरण के लिए अन्तरराष्ट्रीय कोड (International Code of Botanical Nomenclature (ICBN)) का पालन करते हुए पेड़-पौधों के वैज्ञानिक नाम को कहते हैं। इस प्रकार के नामकरण का उद्देश्य यह है कि पौधों के लिए एक ऐसा नाम हो जो विश्व भर में उस पौधे के संदर्भ में प्रयुक्त हो। .
Explanation:
बिनोमियल नामकरण की प्रणाली कार्ल लिनियस द्वारा शुरू की गई थी। कई स्थानीय नाम विश्व स्तर पर किसी जीव की पहचान करना और प्रजातियों की संख्या का ट्रैक रखना बेहद मुश्किल बनाते हैं । इस प्रकार, यह बहुत भ्रम पैदा करता है। इस भ्रम से छुटकारा पाने के लिए एक स्टैंडर्ड प्रोटोकॉल सामने आया। इसके अनुसार प्रत्येक जीव का एक वैज्ञानिक नाम होगा जिसका उपयोग हर कोई किसी जीव की पहचान करने के लिए करेगा। मानकीकृत नामकरण की इस प्रक्रिया को बिनोमियल नामकरण कहा जाता है।
पौधों, जानवरों, पक्षियों और कुछ रोगाणुओं सहित सभी जीवित प्रजातियों के अपने वैज्ञानिक नाम हैं
- The system of binomial nomenclature was introduced by Carl Linnaeus.
- Multiple local names make it extremely difficult to identify an organism globally and keep a track of the number of species.
- Thus, it creates a lot of confusion. To get rid of this confusion, a standard protocol came up.
- According to it, each and every organism would have one scientific name which would be used by everyone to identify an organism.
- This process of standardized naming is called as Binomial Nomenclature.
- All living species including plants, animals, birds and also some microbes have their own scientific names.