दीवानों ने अभावग्रस्त और खुशियों से वंचित लोगों में अपना प्यार कैसे लौटाया
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संसार में प्रत्येक व्यक्ति की कुछ न कुछ मांग है जिसे दीवानों ने अपने स्वच्छंद प्यार से भरने की भरसक कोशिश की है |
दीवानें वंचित लोगों में खुशियाँ बाँटकर एवं उनके दुःख में सहभागी बनकर उसे कम करने की चेष्टा करते है ताकि उन अभावग्रस्त लोगों को भी प्यार तथा स्नेह प्राप्त हो और वे भी इस स्वार्थी दुनिया में आबाद रह सकें | तदर्थ दीवानों ने अपने पराए का भेद त्याग दिया है अर्थात कवि (भगवतीचरण वर्मा ) के अनुसार हम दीवाने सभी के अपने बन गए इस हेतु हमने अपने समस्त सांसारिक बन्धनों को स्वेच्छा से तोड़ डाला है | इस तरह उनके सुख दुःख बाँटकर वे रमते जोगी की भांति संसार में घूमते रहते है |
दीवानों ने अभावग्रस्त और खुशियों से वंचित लोगों में अपना प्यार कैसे लौटाया?
यह प्रश्न दीवानों की हस्ती कविता से लिया गया है| दीवानों की हस्ती कविता भगवती चरण वर्मा द्वारा लिखी गई है|
दीवानों ने अभावग्रस्त और खुशियों से वंचित लोगों के पास गए और उनके साथ अपना और उनका सुख-दुख बांटा और अपने मन की बात कही | एक दूसरे केसाथ बात करने से मन हल्का और शांत हो जाता है| वह जहाँ भी जाते वहाँ पर प्रेम भरी बाते करते और सभी लोगों में खुशियाँ बांटते| दीवाने दुनियां की मोह माया को छोड़ कर अपने जीवन में खुश रहते है| सभी लोगों की सेवा करने को वही अपना धर्म मानते है|