द्वारा गुटनिरपेक्षता असंग लता की नीति को अपनाने के 6 कारणों का उल्लेख कीजिए
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द्वितीय विश्वयुद्ध के उपरान्त विश्व राजनीति का दो ध्रुवों में विभाजन हो चुका था। पूँजीवादी अमेरिका और साम्यवादी सोवियत संघ द्वारा विश्व के नवस्वतंत्र देशों को अपने पक्ष में शामिल करने तथा इन देशों की शासन-प्रणालियों को अपनी विचारधाराओं के अनुकूल ढ़ालने के प्रयास किये जा रहे थे। ऐसे वैश्विक परिदृश्य में भारत के द्वारा निम्नलिखित कारणों से गुटनिरपेक्ष नीति को अपनाया गया-
भारत किसी गुट में शामिल होकर विश्व में अनावश्यक तनावपूर्ण स्थिति पैदा करने का इच्छुक नहीं था।
भारत किसी गुट के विचारधारायी प्रभाव से ग्रस्त नहीं होना चाहता था। वह अपनी नीतियों एवं शासन प्रणाली में किसी गुट विशेष की विचारधारा या दृष्टिकोण को हावी नहीं होने देना चाहता था।
भारत की भौगोलिक सीमाएँ साम्यवादी देशों से जुड़ी थी, अतः पश्चिमी देशों के गुट में शामिल होना अदूरदर्शी कदम होता। दूसरी ओर, साम्यवादी गुट में शामिल होने पर भारत को पश्चिमी आर्थिक व तकनीकी सहायता से वंचित होना पड़ता। जबकि एक नवस्वतंत्र देश होने के कारण भारत को आर्थिक विकास हेतु दोनों गुटों से तकनीकी व आर्थिक सहायता की जरूरत थी, जिसे गुटनिरपेक्ष रहकर ही प्राप्त किया जा सकता था।
गुटनिरपेक्षता स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान घोषित आदर्शों व मान्यताओं का भी पोषण करती थी तथा यह नीति भारत की मिश्रित एवं सर्वमान्य संस्कृति के अनुरूप थी।
अतः भारत ने तात्कालिक परिस्थितियों में उपरोक्त कारणों से गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई तथा इसे अपने विश्व राजनीतिक व्यवहार का मानदण्ड बनाया।
भारत की गुटनिरपेक्ष नीति के प्रमुख लक्ष्यः
अन्तर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा बनाये रखना और उसका संवर्धन करना।
उपनिवेशों के लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार को बढ़ावा देना।
समानता पर आधारित विश्व समुदाय की स्थापना तथा रंगभेद का विरोध।
आण्विक निरस्त्रीकरण तथा नवीन आर्थिक व्यवस्था की स्थापना ।
अन्तर्राष्ट्रीय विवादों एवं संघर्षों के शांतिपूर्ण निपटारे का समर्थन।
अफ्रीका व एशिया के देशों की स्वतंत्रता का समर्थन।
संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था के अन्तर्गत उपरोक्त लक्ष्यों की प्राप्ति।
इस प्रकार हम पाते हैं कि भारत द्वारा अपनाई गई गुटनिरपेक्षता की नीति एवं उसके लक्ष्य पूरी तरह से उन हालातों में तर्कसंगत थे तथा उन्होंने भारत के हितों का समुचित पोषण किया।