दो विद्युत बल्ब में टंगस्टन के फिलामेंट है और लम्बाई समान है यदि एक बल्ब 60 वाट देता है और दूसरा बल्ब 100 वाट देता है तो
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विधुत बल्ब के द्वारा प्रकाश उत्पन्न होता है। गरम होने के कारण प्रकाश का उत्सर्जन, तापदीप्ति कहलाता है। इसमें एक पतला फिलामेन्ट (तार) होता है जिससे होकर जब धारा बहती है तब यह गरम होकर प्रकाश देने लगता है। फिलामेन्ट को काँच के बल्ब के अन्दर इसलिये रखा जाता है ताकि अति तप्त फिलामेन्ट तक वायुमण्डलीय आक्सीजन न पहुँच पाये और इस तरह क्रिया करके फिलामेन्ट को कमजोर न कर सके। विद्युत बल्ब में फिलामेन्ट टंगस्टन का बना होता क्योंकि इसका गलनांक बहुत उच्च होता है ताकि ज्यादा गर्म होने पर फिलामेंट गल न जाए। टंग्स्टन का उपयोग काटने के औजार, शल्यचिकित्सा के यंत्र आदि की मिश्रधातुओं में होता है, क्योंकि ये मिश्रधातुएँ अम्ल, क्षार आदि से प्रभावित नहीं होतीं। एक्सरे उपकरण, थर्मायनिक वाल्ब, बिजली के जोड़ आदि में टंग्स्टन का उपयोग हो रहा है। टंग्स्टन मिश्रित इस्पात बहुत से विशेष कार्यों में उपयोगी सिद्ध हुआ है।
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Vinayak Sharma
Vinayak Sharma
विद्युत् बल्ब में अंदर एक स्प्रिंग होती है। जब उनमें विद्युत् प्रवाहित होती है तो यह चमकने लगती है और प्रकाश देती है। जब यह स्प्रिंग चमकती है तब इसे फिलामेंट कहा जाता है।
अब प्रश्न कि क्यों बल्ब में फिलामेंट के रूप में टंगस्टन का प्रयोग किया जाता है। तो हम यह जान लें कि टंगस्टन धातु का गलनांक बहुत ही ज्यादा होता है इस वजह से यह पिघलता नहीं।
टंगस्टन धातु का गलनांक 3140 डिग्री सेंटीग्रेट होता है जबकि फिलामेंट को चमकने के लिए बस 2700 डिग्री सेंटीग्रेट ही चाहिए। यही कारण है कि विद्युत् बल्ब में फिलामेंट के रूप में टंगस्टन का प्रयोग किया जाता है।
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