India Languages, asked by ruchitanwar1994, 5 hours ago

देवादशवीय अष्टावक गिरे सह क्रीडति स्म। तस्य मित्राणि अपच्छन्न भो अष्टावक्रातव पिता नास्ति किम् दय त कदापि न अपश्याम। अष्टावक्र झटिति गृहम आगत्य मातरम अपरछत माता मम पिता कुत्र अस्ति इति?​

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Answered by gitikam341
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अष्टावक्र (२०१०) जगद्गुरु रामभद्राचार्य (१९५०–) द्वारा २००९ में रचित एक हिन्दी महाकाव्य है। इस महाकाव्य में १०८-१०८ पदों के आठ सर्ग हैं और इस प्रकार कुल ८६४ पद हैं। महाकाव्य ऋषि अष्टावक्र की कथा प्रस्तुत करता है, जो कि रामायण और महाभारत आदि हिन्दू ग्रंथों में उपलब्ध है। महाकाव्य की एक प्रति का प्रकाशन जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट, उत्तर प्रदेश द्वारा किया गया था। पुस्तक का विमोचन जनवरी १४, २०१० को कवि के षष्टिपूर्ति महोत्सव के दिन किया गया।[1]

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