Political Science, asked by Chanakya2168, 1 year ago

दैवीय सिद्धान्त सत्ता के उत्तराधिकार की किस रूप में व्याख्या करता है?

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Answered by kasiram569
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संपत्ति के स्वामी की मृत्यु के उपरांत, उसके द्वारा किसी दानपत्र (हिब्बा) या वसीयतनामा न संपादित करने की स्थिति में, उसकी संतान या संबंधी द्वारा स्वामित्व अधिकार प्राप्त कर स्थानापन्न होना ही उत्तराधिकार है। आंग्ल भाषा में इसे "सेक्सेशन" (Succession) कहते हैं जिसके समकक्ष अंग्रेजी शब्द "इन्हेरिटेन्स' (Inheritance) (जन्म ग्रहण करने के साथ-साथ पैतृक संपत्ति पर उत्तराधिकार प्राप्त करना) इसी उत्तराधिकार शब्द का पर्यायवाची शब्द है।

परिचय

अतीत काल से भारत में हिंदू एवं मुसलमान आदि धर्मावलंबियों का उत्तराधिकार नियम व कानून इन धर्मों का अपनी विशेष व्यवस्था से शासित होता रहा। ब्रिटिश शासन ने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम सन्‌ १८६५ ई. एवं आज लागू वही अधिनियम सन्‌ १९२५ ई. में पारित करके संपूर्ण भारत में, कुछ विशेष आवश्यक एवं प्रमुख मुद्दों पर सभी धर्मावलंबियों, जैसे हिंदू, मुसलमान, ईसाई आदि को एक समान एवं सरल कानून से शासित कर दिया जिसके अंतर्गत वसीयतनामा, उत्तराधिकार सर्टिफिकेट, शासनपत्र आदि अन्यान्य व्यवस्थाओ का विशद प्रावधान है। परंतु इस अधिनियम के बाहर के सभी उत्तराधिकार संबंधी प्रश्न हर धर्म की अपनी-अपनी व्यवस्था से शासित होते रहे हैं।

वेद, शास्त्र पर आधारित हिंदू कानून में संयुक्त अविभक्त हिंदू परिवार की मूर्तिमान्‌ व्यवस्था, जो संपत्ति स्वामित्व के साथ-साथ भोजन एवं पूजा पाठ को भी संयुक्त एवं अविभक्त रूप में स्वीकार करती है, हिंदू कानून का अविचल सोपान है जिसकी समयांतर पर जीमूतवाहन ने मात्र बंगाल के लिए दायभाग नियम एवं विज्ञानेश्वर ने शेष भारत के लिए मिताक्षरा नियमों में वर्गीकृत कर दिया। अटल रूढ़ियों से व्याप्त इस संयुक्त अविभक्त हिंदू परिवार के दुरूह नियमों को सन्‌ १९३७ ई. के हिंदू-नारी-संपत्ति-अधिकार अधिनियम ने जड़ से हिला दिया एवं हिंदू नारी को उसके पति की मृत्यु के बाद स्वामित्व अधिकार पर स्थानापन्न कर दिया। परिणामस्वरूप जागरूकता की धारा प्रवाहित हुई एवं समीचीन हिंदू कोड की माँग की। इसी से प्रेरित राव-कमेटी ने सन्‌ १९४४ ई. में हिंदू कोड का बृहद् मसविदा भारत सरकार को समर्पित किया। इसी मसविदे से भारतीय संसद् ने कई चरणों एवं भागों में कई अधिनियम पारित किए। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (२५, सन्‌ १९५६ ई.) ने संपूर्ण भारत में अन्यान्य हिंदू जाति को एक समान एवं सरल प्रावधान द्वारा उत्तराधिकर का पूर्ण कानून प्रदान किया है। यह अधिनियम दिनांक १७ जून सन्‌ १९५६ से लागू होकर कई महत्वपूर्ण एवं आधुनिकतम प्रावधान सशक्त रूप से सामने रखता है। अब समानता एवं एकरूपता की धारा उत्तराधिकार में प्रवाहित है। पैतृक या स्वगृहीत संपत्ति में लड़का, लड़की, विधवा तथा माँ का अधिकार एवं भाग समान हो गया है। स्त्री के संपत्ति संबंधी सीमित अधिकार को पूर्ण एवं असीमित रूप प्रदान कर दिया गया है।

परंतु कृषि योग्य भूमि की बाबत हर प्रदेश में अलग-अलग भूमिसुधार एवं काश्तकारी अधिनियम संपूर्ण भारत में लागू हैं जिनमें कृषि योग्य भूमि आदि के उत्तराधिकार का विशेष प्रावधान प्रदत्त है। परिणामस्वरूप कृषि योग्य भूमि इन प्रदेशीय भूमि सुधार एवं काश्तकारी अधिनियमों में प्रदत्त उत्तराधिकार प्रावधानों से ही शासित होती है। इस विषय में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, १९५६, लागू नहीं होता है। कृषि योग्य भूमि संबंधी इन अधिनियमों में धर्म, जाति या वर्ग का कोई स्थान न होकर हर भारतीय नागरिक का समान उत्तराधिकार प्रावधान प्रदत्त है।

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