देवनागरी लिपि के विकास पर सारगर्भित निबन्ध लिखिए।
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सातवीं शताब्दी के बाद देवनागरी का विकास प्रारम्भ हुआ कोंकण के सिलहट शासकों ने 834 एवं 851 ई॰ में कन्हेरी ने अपने शिलालेखों में नागरी अक्षरों का प्रयोग किया था, आठवीं से दसवीं शताब्दी तक नागरी लिपि अपनी परिपक्वावस्था में पहुँच गयी थी। ग्यारहवीं सदी के प्रारम्भ में गुजरात, राजस्थान एवं उत्तरी दक्षिण मिली है।
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छठी और सातवीं शताब्दी में इनका और भी आगे विकास हुआ और यह विश्वलिपि के रूप में प्रतिष्ठित हुई। गुप्त लिपि की कालांतर में कुटिल लिपि के रूप में आयी बोधगया के महानतम शिलालेख (588 ई॰) में जो लिपि प्राप्त होता है, उससे नागरी लिपि के अनेक लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ते हैं। सातवीं शताब्दी के बाद देवनागरी का विकास प्रारम्भ हुआ कोंकण के सिलहट शासकों ने 834 एवं 851 ई॰ में कन्हेरी ने अपने शिलालेखों में नागरी अक्षरों का प्रयोग किया था, आठवीं से दसवीं शताब्दी तक नागरी लिपि अपनी परिपक्वावस्था में पहुँच गयी थी।
ग्यारहवीं सदी के प्रारम्भ में गुजरात, राजस्थान एवं उत्तरी दक्षिण मिली है। जिनमें देवनागरी लिपि का प्रयोग हुआ है। वस्तुतः 11वीं शताब्दी की नागरी लिपि वर्तमान लिपि से काफ़ी मिलती-जुलती हैं। 12वीं शताब्दी की नागरी वर्तमान नागरी के अति निकट ही है। 12वीं सदी से 18वीं सदी तक की देवनसागरी में स्वल्पांतर दिखाई पड़ता है।
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