दक्षिण भारत में मंदिर स्थापत्य/वास्तुकला और मूर्तिकला के विकास के बारे में लिखें।
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दक्षिण भारत में मंदिर स्थापत्य/वास्तुकला और मूर्तिकला का विकास
दक्षिण भारत में मंदिरों का निर्माण द्रविड़ शैली में किया गया है , इन शैली में मंदिर चार दीवारी से घिरे होते है| इस चार दीवारी के बीच प्रवेश द्वार होते है जिन्हें गोपुरम कहते है , मंदिर के गुम्बद का रूप जिसे तमिलनाडु में विमान कहा जाता है , मुख्यतः सिधिद्वार पिरामिड की तरह होता है की ऊपर की और ज्यामिति रूप से उठा होता है न की उत्तर भारत के मंदिरों की तरह मोड़ द्वार शिखर के रूप में |
दक्षिण भारत के मंदिरों में प्रवेश द्वार पर आमतोर पर भयानक द्वारपालों की प्रतिमाएं खड़ी की जाती है जो मानो मंदिर की रक्षा कर रही हो | मंदिर में कोई बड़ा तालाब और तलाशय होता है| दक्षिण के कुछ पवित्र मने जाने वाले मंदिरों में मुख्य मंदिर जिस में गर्भ ग्रह बना होता है| उसका गुम्बद सब से छोटा होता है| इसका कारण यह है होता है की वह मंदिर का सबसे पूरण भाग होता है और समय के साथ
जैसे नगर का आकर और जनसंख्या बढ़ जाती है , तो मंदिर का आकर भी बढ़ जाता है| उसके चारों और नई चारदीवारी बनाई जाती है उसकी ऊंचाई भी पहली से ज्यादा होती है| इस कला का भव्य शिव मंदिर जिसे राज राजरामेश्वर या बृहदेश्वर मंदिर कहा जाता है| समस्त भारतीय मंदिरों से सबसे बढ़ा और ऊँचा है|
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भारतीय कला का परिचय कक्षा -11
पाठ-6 मंदिर स्थापत्य और मूर्तिकला
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उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय मंदिरों की प्रमुख विशेषताओं या लक्षणों का वर्णन करें।