दक्षिण के चोल एवं चालुक्य राज्यों का सविस्तार वर्णन करें।
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दक्षिण के चोल व चालुक्य राज्यों का सविस्तार वर्णन —
चोल वंश — चोल वंश का संस्थापक विजयालम था। विजयालम के पुत्र आदित्य ने पल्लव नरेश अपराजित को हराया था और आदित्य के पुत्र परांतक प्रथम ने पल्लव को बुरी तरह नष्ट करके रख दिया। चोल राजा राजराज प्रथम पूरे मद्रास, मैसूर, कूर्ग, सिंहल दीप आदि को अधीन करके पूरे दक्षिणी भारत का एकछत्र सम्राट बन गया था। उसके पुत्र राजेंद्र प्रथम के पास एक शक्तिशाली नौसेना थी, जिसके बल पर उसने पेगू, मर्तबान तथा अंडमान निकोबार द्वीपों को जीत लिया। उसने बिहार और बंगाल के शासन महिपाल से भी युद्ध किया। वह कलिंग को पार करके दक्षिणी कोसल, बंगाल, मगध आदि को भी पार करते हुए गंगा तक जा पहुंचा था। अपनी इस विजय के उपलक्ष में उसने गंगईकोंड की उपाधि धारण की थी।
चोल वंश में बाद में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष युद्ध छिड़ गया और इस संघर्ष में सिंहासन राजेंद्र प्रथम को मिला जिसका माता चोल और पिता चालुक्य था। इस तरह राजेन्द्र प्रथम ने चालुक्य-चोल नामक नये वंश की स्थापना की।
चालुक्य वंश — चालुक्य राजाओं में पुलकेशिन द्वितीय सबसे अधिक यशस्वी और प्रख्यात राज रहा है। उसने 608 ईस्वी में शासन संभाला था। उसका राज्य नर्मदा नदी से लेकर दक्षिण में कावेरी नदी तक फैला हुआ था। हालांकि वो 642 ईस्वी में नरेश नरेंद्र सिंह वर्मा से हार गया था। पुलकेशिन के पुत्र विक्रमादित्य ने राष्ट्रकूट नरेश को हराकर कल्याणी को अपनी राजधानी बनाया और एक नए चालुक्य राज्य की स्थापना की। यह नया चालुक्य राज्य 973 ईस्वी से 1206 ईस्वी तक अस्तित्व में रहा।
हालांकि कल्याणी के चालुक्य राज्य का एक लंबे अरसे तक तंजौर के चोल वंशी राजाओं से संघर्ष चला। सत्याश्रम नामक चालुक्य राजा को चोल नरेश राजराज राज ने पराजित किया। चालुक्य सोमेश्वर प्रथम ने इस अपमान का बदला चोल नरेश राजराज को कोय्यम के युद्ध में हरा कर लिया। चालुक्य वंश का सातवा राजा विक्रमादित्य षष्ठम हम था जो विक्रमांक के नाम से प्रसिद्ध था उसने कांची को अपने अधिपत्य में ले लिया।