History, asked by iamnurulhaque2387, 1 year ago

दमित समूहों को सुरक्षा के पक्ष में किए गए विभिन्न दावों पर चर्चा कीजिए।

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Answered by shishir303
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भारत के स्वतंत्रता के संबंध में हुए राष्ट्रीय आंदोलन के समय डॉ भीमराव अंबेडकर ने दमित यानी दलित जातियों के लिए अलग निर्विचिकाओं की मांग की थी, लेकिन उस समय महात्मा गांधी ने उनकी इस मांग का विरोध किया था। क्योंकि गांधीजी के अनुसार ऐसा करने से दलित समुदाय से समाज से कट जाएगा। संविधान सभा में संविधान निर्माण के समय भी इस विचार पर काफी वाद विवाद हुआ था। संविधान निर्माण की प्रक्रिया में दमित यानी दलित समूहों की सुरक्षा के पक्ष में अनेक तरह के दावे प्रस्तुत किए गए जो कि इस प्रकार थे...

  • कुछ सदस्यों के विचार थे कि अस्पृश्यता यानि अछूतों की समस्या को उनके संरक्षण केवल उनके संरक्षण या बचाव द्वारा ही हल नहीं किया जा सकता, बल्कि इसके लिए सामाजिक चेतना जरूरी है। समाज में तथाकथित ऊंची जाति के लोग दलित लोगों से मिलने जुलले से कतराते हैं, उनके साथ खाना नहीं खाते। धार्मिक स्थानों पर उन्हें प्रवेश नहीं है। कई सार्वजनिक जगहों पर उन्हें प्रवेश करने से रोकते हैं, इसके लिए केवल इन जातियों के कानून द्वारा संरक्षण और बचाव से ही नहीं बल्कि सामाजिक चेतना के द्वारा भी लोगों की सोच में बदलाव लाना चाहिए।
  • मध्य प्रांत के एक सदस्य के.जे .खंडेलकर करने अपने समाज अपने समाज यानी दलित समाज की स्थिति के बाद वर्णन करते हुए कहा हमें हजारों साल तक दबाया गया, कुचला गया है हमें इतना दबाया और कुचला गया कि हमारा दिमाग व हमारे शरीर ने काम करना बंद कर दिया है और हमारा हृदय भी भावशून्य हो गया है हमें आगे बढ़ने का साहस नहीं रहा है यह हमारी विडंबना है हमारी यही वास्तविक स्थिति है।
  • मद्रास से एक सदस्य जे. नागप्पा ने कहा हम सदियों से कष्ट उठाते आ रहे हैं और आप हमें इतना साहस नहीं बचा है कि हम और अधिक कष्ट उठा सकें हमें। अपनी जिम्मेदारियों का एहसास हो गया है कि हम जान गए हैं कि हमें अपनी बात कैसे मनवानी है।

भारत की आजादी के समय जब भारत का विभाजन हो गया और विभाजन के बाद हुई भयानक हिंसा का तांडव देखकर डॉक्टर अंबेडकर ने दलितों के लिए प्रत्यक्ष निर्वाचित का की मांग को छोड़ दिया और अंततः उन्होंने दलितों के कल्याण के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए..

  • अस्पृश्यता यानी अछूत प्रथा का तुरंत उन्मूलन किया जाए।
  • सभी हिंदू मंदिरों में बिना किसी भेदभाव के सभी जातियों विशेषकर दलितों को प्रवेश दिया जाए।
  • दलित जातियों के लोगों को विधान मंडलों व सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाए।  

इन सुझावों के बावजूद बहुत से लोगों का मानना था कि खाली इन सुझावों से ही दलित का उत्थान नहीं हो पाएगा बल्कि समाज में लोगों की सोच बदलने की ज्यादा जरूरत है। फिर भी इन सुझावों का संविधान सभा द्वारा स्वागत किया गया और संविधान में यह सुझाव लागू किए गए।

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