दम तोड़ते कुटीर उद्योग, बेकार होते हाथ विषय पर कम से कम 100 शब्दों में चित्र सहित जानकारी एकत्र करके अनुच्छेद लिखिए।
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पूर्वाचल की गरीब-गुरबा आबादी की रोजी-रोटी का सबसे बड़ा जरिया है कुटीर उद्योग लेकिन इसकी दशा अब बेहद खराब है। कच्चा माल खरीदने को धन का संकट तो बाजार भी बिचौलियों के हवाले। रही तादाद की बात तो आंकड़ा लाखों से कम नहीं लेकिन असंगठित कामगारों के हक की बात राजनीति के गलियारों तक पहुंचने से पहले ही गूंगी हो जाती है। लिहाजा, इन कुटीर श्रेणी के उद्योगों से जुड़े लोग पुश्तैनी व परंपरागत काम छोड़ दूसरे काम की ओर पलायन करने को विवश हैं। अफसोस की बात यह है कि इन कामगारों का दर्द निबटाने की सटीक कार्ययोजना किसी भी राजनीतिक दल के पास नहीं है।
तबक उत्पादन : तबक या चांदी का बर्क के उत्पादन को ही लें तो इसकी आपूर्ति पूर्वाचल के विभिन्न जिलों से देश विदेश में की जाती है। चांदी की कीमत में लगातार तेजी ने तबक बनाने वाले कामगारों के हाथ बांध दिए। दो दशक पहले इस व्यवसाय से लगभग 10 हजार कारीगर जुड़े हुए थे। अब यह संख्या दो हजार के आसपास सिमट गई है।
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पूर्वाचल की गरीब-गुरबा आबादी की रोजी-रोटी का सबसे बड़ा जरिया है कुटीर उद्योग लेकिन इसकी दशा अब बेहद खराब है। कच्चा माल खरीदने को धन का संकट तो बाजार भी बिचौलियों के हवाले। रही तादाद की बात तो आंकड़ा लाखों से कम नहीं लेकिन असंगठित कामगारों के हक की बात राजनीति के गलियारों तक पहुंचने से पहले ही गूंगी हो जाती है।
Explanation:
पूर्वाचल की गरीब-गुरबा आबादी की रोजी-रोटी का सबसे बड़ा जरिया है कुटीर उद्योग लेकिन इसकी दशा अब बेहद खराब है। कच्चा माल खरीदने को धन का संकट तो बाजार भी बिचौलियों के हवाले। रही तादाद की बात तो आंकड़ा लाखों से कम नहीं लेकिन असंगठित कामगारों के हक की बात राजनीति के गलियारों तक पहुंचने से पहले ही गूंगी हो जाती है। लिहाजा, इन कुटीर श्रेणी के उद्योगों से जुड़े लोग पुश्तैनी व परंपरागत काम छोड़ दूसरे काम की ओर पलायन करने को विवश हैं। अफसोस की बात यह है कि इन कामगारों का दर्द निबटाने की सटीक कार्ययोजना किसी भी राजनीतिक दल के पास नहीं है।
तबक उत्पादन : तबक या चांदी का बर्क के उत्पादन को ही लें तो इसकी आपूर्ति पूर्वाचल के विभिन्न जिलों से देश विदेश में की जाती है। चांदी की कीमत में लगातार तेजी ने तबक बनाने वाले कामगारों के हाथ बांध दिए। दो दशक पहले इस व्यवसाय से लगभग 10 हजार कारीगर जुड़े हुए थे। अब यह संख्या दो हजार के आसपास सिमट गई है।
कलाबत्तू उद्योग : बनारस का कलाबत्तू उद्योग आज भी परंपरागत तरीकों में बंधा है। शहर व ग्रामीण इलाकों में लगभग आठ सौ केंद्रों पर कलाबत्तू तैयार किया जाता है जहां परोक्ष रूप से 40-50 हजार कारीगर अपने हुनर के बूते परिवार पेट का भरण-पोषण करते हैं। जरी में धागे पर चांदी या चांदी चढ़ा तांबे का तार लपेटकर रंगाई की जाती है। काशी कलाबत्तू कुटीर उद्योग मंडल के अध्यक्ष श्यामसुंदर जायसवाल कहते हैं कि चीन व जापान से आयातित मल्टीहेड इम्ब्राइडरी मशीनों पर प्लास्टिक की इमिटेशन जरी से साड़ी तैयार करने का चलन बढ़ा है जिसका असर हथकरघा उद्योग पर पड़ा है। आलम यह कि करीब एक लाख हथकरघे साल भर से बंद पड़े हैं। बड़ी संख्या में बुनकरों का पलायन हुआ व तमाम पेट पालने के लिए दूसरा काम करने लगे हैं।
दम तोड़ते कुटीर उद्योग, बेकार होते हाथ विषय पर कम से कम 100 शब्दों में चित्र सहित जानकारी एकत्र करके अनुच्छेद लिखिए।
https://brainly.in/question/42530882
दम तोड़तेकुटीर
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