ठपुतली क गुस्से से उबली बोली ये धागे क्यों हैं मेरे पीछे-आगे? इन्हें तोड़ दो; मुझे मेरे पाँवों पर छोड़ दो। सुनकर बोली और और कठपुतलियाँ कि हाँ, बहुत दिन हुए हमें अपने मन के छंद छुए। मगर... पहली कठपुतली सोचने लगी- ये कैसी इच्छा मेरे मन में जगी?
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कठपुतली कविता की इन पंक्तियों में कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने एक कठपुतली के मन के भावों को दर्शाया है। कठपुतली दूसरों के हाथों में बंधकर नाचने से परेशान हो गयी है और अब वो सारे धागे तोड़कर स्वतंत्र होना चाहती है। वो गुस्से में कह उठती है कि मेरे आगे-पीछे बंधे ये सभी धागे तोड़ दो और अब मुझे मेरे पैरों पर छोड़ दो।
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