ध्रुव तारे की अटल ता के पीछे कौन सी लोककथा है
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जयपुर। ध्रुव तारे के बारे में हम सब यही जानते है कि सबसे चमकीला तारा है और हर रोज, हर समय एक ही स्थिति में दिखाई देता है। ध्रुव तारे से मानव प्राचीन काल से ही अवगत रहा है। पुरानें जमानें के नाविकों एवं यात्रियों को दिशा के ज्ञान के करने के लिए इसी तारे का सहारा लेन पड़ता था और वर्तमान में भी पानी के जहाजों को चलाने में हम तारों की सहायता लेते हैं और साथ ही बड़ी-बड़ी खगोलीय अवलोकन के लिए वेधशालाएँ हैं भी इसी तारें से करते है।इसी प्रकार से अन्तरिक्ष यात्रियों के लिए भी ध्रुव तारे का ज्ञान होना आवश्यक है।
आपको शायद इस बात का तो पता ही होगा कि हमारे पुराणों में ध्रुव तारे की स्थिरता को लेकर कई एक कहानीयां है जिसमें से एक कहानी है राजा उत्तानपाद की दो रानियाँ थी-सुनीति और सुरुचि। उत्तानपाद सुरुचि से अधिक प्रेम रखते थे। सुनीति को पुत्र हुआ जिसका नाम था ध्रुव और सुरुचि के हुआ उसका नाम था उत्तम था। एक दिन उत्तम को अपने पिता के गोद में बैठा देखकर ध्रुव ने भी गोद में बैठने की इच्छा जाहिर की और जाकर बैठ गया लेकिन सुरुचि ने बालक ध्रुव को वहाँ से धकेल दिया।