Hindi, asked by swaroopdanc, 8 months ago

ध्रुवस्वामिनी में नारी की प्रतिष्ठा किस प्रकार सिद्ध हुई स्पष्ट कीजिए​

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Answered by shishir303
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‘ध्रुवस्वामिनी’ नाटक ‘जयशंकर प्रसाद’ द्वारा लिखा गया एक ऐतिहासिक नाटक है. जिसमें लेखक ने नारी की प्रतिष्ठा सिद्ध करने का प्रयत्न किया है। प्राचीन काल से ही परंपराओं के नाम पर इस समाज में नारी को एक केवल भोग की वस्तु समझा जाता रहा है। नारी के मन तथा भावनाओं का कोई महत्व नहीं समझा जाता था। नारी भी एक मानव होती है, कोई वस्तु नही, लेकिन पुरुष प्रधान समाज में नारी को केवल भोग की वस्तु समझा जाता रहा है।

ध्रुवस्वामिनी की नारी पात्र की भी स्थिति इसी तरह की है, उसे उपहार की वस्तु समझकर उसके पिता ने राजा को देकर अपनी जान बचाई। राजा ने अपने नपुंसक पुत्र को ध्रुवस्वामिनी सौंप दिया, अपने नपुंसक पुत्र से विवाह कर दिया। उसका नपुंसक पत्र ने युद्ध से बचने के लिए उसे शकराज के पास भेज दिया। इस तरह ध्रुवस्वामिनी पुरुषों के इसी आदान-प्रदान के खेल में खिलौना बनी रही। वह सब कुछ सहती रही, वह चाह कर भी प्रतिकार नही कर सकी। जब परिस्थितियां उसके अनुकूल हुई तो उसका आक्रोश फूट पड़ा और उसने सबसे यही सवाल पूछा कि आज निर्णय हो जाना चाहिये कि वह है कौन? एक जीविन मानव अथवा केवल एक वस्तु।

लेखक ने अपने इस नाटक के माध्यम से स्त्री मुक्ति और अस्मिता का प्रश्न उठाया है। आज के समय में स्त्री मुक्ति और उसके उत्थान की जो बातें की जाती हैं, लेखक ने अपने इस नाटक में बरसों पहले की ही उन बातों की ओर संकेत किया है। यह नाटक नारी के अस्तित्व और उसके अधिकार की बात करता है। इस नाटक में स्त्री उत्थान के चिंतन के विभिन्न दृष्टिकोण को कथा का रूप देकर प्रस्तुत किया गया है। यह नाटक इस बात की ओर संकेत करता है कि स्त्री की मुक्ति तभी संभव है, जब पुरुषों की सोच और सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन हो।

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